हज़रत ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी - Khwaja Moinuddin Chishti Ajmeri

0

 हज़रत ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी - Khwaja Moinuddin Chishti Ajmeri


हज़रत ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी अलैहिर्रहमा


विलादत, नाम, नसब


आपकी विलादत 535 हिजरी को खुरासान के शहर संजर में हुई। यानी आज से लगभग 860 साल पहले आपकी विलादत हुई।

आपका नाम मुहम्मद हसन है आपका लक़ब अताए रसूल, हिन्दल वली, ग़रीब नवाज़ है ।

आपकी किस्मत में दुनिया का सबसे अज़ीम खानदान आया है। यानी आप हसनी / हुसैनी सादात है जिसको उलेमा की जुबान में नजीबुत तरफैन सैयद कहा जाता है। आप वालिद की तरफ से हुसैनी सैयद है और वालिदा की तरफ से हसनी सैयद है ।

आपका बचपन और तालीम


आपने कम उम्र में ही क़ुरआन हिफ़्ज़ कर लिया था। जब आपकी उम्र 14 साल हुई तो आपके वालिद हज़रत सैयद गयासुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह का इंतेक़ाल हो गया। आप अपनी वालिदा के पास रहते थे। आपके वालिद एक बाग और कुछ नगदी विरासत में छोड़ गए थे एक दिन आपने अपनी वालिदा से कहा कि ए अम्मी जान मेरा मन बाग और गुलशन(बगीचा)की रखवाली में नही लगता बल्कि में चाहता हूँ कि उस बाग की हिफाजत करूं और उस गुलशन को तरो ताज़ा करूँ और हरा भरा रखूँ जिसे मेरे जद्दे अमज़द हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने लगाया है। आप ने कहा कि अम्मी जान मुझे अल्लाह की राह में दे दीजिए आपकी ये बात सुनकर आपकी वालिदा ने आपको इजाजत दे दी। उसके बाद आला तालीम के लिए नेशापुर जो कि एक मशहूर शहर है वहां चले गए जहां से बड़े बड़े उलेमा, बुजुर्ग, सूफिया हुए हैं। जब आप नेशापुर पहुंचे तो वहां पर सैयद हिसामुद्दीन बुखारी रहमतुल्लाह अलैह थे जो अपने वक़्त के बहुत बड़े मुहद्दिस मुफ़स्सिर थे। उनके दारुल उलूम में आपने तालीम हासिल की कुछ सालों में आपने तालीम मुकम्मल कर सनद हासिल कर ली उसके बाद आप एक क़ामिल पीर की तलाश में रहने लगे।

पीरो-मुर्शिद


एक बात जरूर याद रखो अज़ीज़ों चाहे कोई कितना इल्म पढ़ ले या चाहे कोई कितना बड़ा अल्लामा, मुहद्दिस बन जाये लेकिन तबतक उसका बेड़ा पार नही होता जबतक उसे कोई मुर्शिद क़ामिल की निस्बत नही मिल पाती।इल्मे बातिन और तरीक़त व मारफत तबतक हासिल नही हो सकती जबतक अहले इरफान के साथ ताल्लुक न हो। मौलाना रूम रहमतुल्लाह अलैह से बड़ा आलिम कौन था--?मगर आप उस वक़्त तक मौलाना रूम नही बने जबतक हज़रत शाह शम्स तबरेज़ रहमतुल्लाह अलैह की निगाह नही हुई। आपका बहुत मशहूर शेर है

मौलवी हरगिज़ न शुद मौलाए रूम 
ता गुलामी शम्स तबरेज़ी न शुद


हज़रत ख्वाजा मोईनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने इल्मे दीन हासिल करने के बाद क़ामिल पीर की तलाश शुरू की

अल्लाह तबारक तआला इरशाद फरमाता है (तर्जुमा)


"ए ईमान वालो ! अल्लाह से डरो तक़वा और परहेजगारी अख्तियार करो और अल्लाह की तरफ वसीला ढूंढो " उलमाए क़राम और सूफिया ए इज़ाम फरमाते हैं कि वसीले से मुराद मुर्शिद ए क़ामिल है। जब आप को मालूम हुआ कि नेशापुर के पास एक गाँव है जिसका नाम है हारून है उस गांव में क़ुतुबुल अकताब हज़रत ख्वाज़ा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ रखते थे। आप अपने वक़्त के बड़े क़ुतुबुल अकताब और वली ए क़ामिल थे।

जब आप उनकी बारगाह में हाजिर हुए तो आपको बगैर देखे ही ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि

"हसन में तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा हूँ, वक़्त बहुत थोड़ा है जल्दी आओ मेरे पास, जो हिस्सा अल्लाह और उसके रसूल की तरफ से तुम्हारे लिये है वो ले लो

फिर आप मुरीद हुए, शेख क़ामिल ने एक हुज़रा आपको रहने के लिए दिया। आप उस हुजरे में रहकर वजायफ़ पढ़ते थे।

(ads1)

इबादत गरीब नवाज की


अज़ीज़ों अल्लाह की इबादत से आज हम और आप कितने दूर है एक ख्वाज़ा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह हैं अल्लाह अल्लाह। आजकल हमारा हाल ये है कि हम ये चाहते हैं कि हमे ऐसा पीर मिल जाए जो एक निगाह से हमे क़ुतुब बना दे.न नमाज़ पढ़नी पड़े, न रोज़ा रखना पड़े, न हज करना पड़े, न दाढी रखनी पड़े, न तहज्जुद पढनी पड़े, न कोई जिक्र अज़कार करना पड़े, न ख्वाहिशात नफ़सानी को कुचलना पड़े बगैर मेहनत व मशक्कत किये बगैर हमे कुतुब बना दे तो हमारा हाल ये है।

मेरे लिखने का मतलब ये बिल्कुल नही है कि अल्लाह वाले किसी को एक नज़र में क़ुतुब नही बना सकते,बिल्कुल बना सकते हैं जब चाहे जिसे चाहे जहां चाहे लेकिन ये कानून नही है कि सबको एक निगाह से क़ुतुब बनाते रहे। क़ानून यही है मेहनत व मशक्कत से ये मर्तबा हासिल करो ।

शाने गरीब नवाज


आपकी शान का एक हिस्सा भी मोअल्लिफ़ नही लिख सकता।एक बार आपके पीरो मुर्शिद ने पूछा कि ए हसन! बेटा तुम कहाँ तक देखते हो--? आपने अर्ज़ किया!सातों आसमानों और सातों जमीनों की हक़ीक़तों को बे हिजाब देखता हूँ । जो कुछ सातों आसमानों और सातों ज़मीनों में है वो सब कुछ देखता हूँ | शेख क़ामिल ने फरमाया बेटा अभी बड़ी कमी है तुम्हे जिस मंजिल पर हम पहुंचाना चाहते हैं वो अभी बड़ी दूर है और मेहनत और मशक़्क़त करो और रियाजत करो । ख्वाजा गरीब नवाज़ ने मेहनत और मशक़्क़त करना शुरू कर दी इधर शेख क़ामिल ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह की तवज़्ज़ो आप पर थी।

कुछ दिन बाद फिर आपके पीर ने पूछा कि हसन अब तुम कहाँ तक देखते हो?

आपने अर्ज़ किया "तहतुश शरा" से "अर्शे मुअल्ला" तक सब कुछ देखता हूँ।

फिर आपके मुर्शिद ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है अभी कमी है और मशक्कत करो। आपने और मेहनत और मशक़्क़त शुरु कर दी। तीसरी मर्तबा आपको बुलाकर पूछा अब कहाँ तक देखता हो ?

अर्ज़ की या मुर्शिद अर्शे मुअल्ला से आगे अल्लाह तआला की हकीकत को देखता हूँ और उनकी अज़मत के अनवार और तज़ललियात को देखता हूँ ये सुनकर आपके पीरो मुर्शिद ने फरमाया की अब काम हो गया।

अज़ीज़ों जरा देखो शान मेरे ख्वाज़ा की जब आक़ा के गुलामो का ये आलम है तो सैयदुल अम्बिया का आलम क्या होगा ?

ख्वाज़ा गरीब नवाज की शान और उनके पाक नसब पर पीर सैयद नसीरुद्दीन जीलानी का ये शेर चार चांद लगाता है।

गुलशने मुस्तफा की फबन और हे 

ये चमन और हे

शाह-ए- अबरार की अंजुमन और हे 

ये चमन और हैं

बू ए गुलदस्ता ऐ पंजतन और हे 

ये चमन और हे

शाने आले हुसैन ओ हसन और हे

इसके बाद आप मुर्शिद से ख़िरका ए खिलाफत व इजाजत लेकर मदीने शरीफ चले गए। छः महीने तक अपने नाना सैयदुल अम्बिया की मुक़द्दस बारगाह में रहे । सरकारे दो आलम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने आपको अपनी ज़ियारत का शरफ़ बख्शा और फ़रमाया 

"तुम मोईनुद्दीन हो ! यानी दीन के मददगार, तुम क़ुतुबुल मशायख हो"

ये अलक़ाब आपको नबी क़रीम ने अता फरमाए जबकि आपका असली नाम हसन था । उसके बाद आपको हुक्म दिया और कहा बेटा जाओ हिंदुस्तान की सरजमीं को कुफ्र से पाक करो अल्लाह तुम्हारे साथ है, हमारी नज़र तुम पर है तो इस तरह से आप हुक्म पाने के बाद मदीना शरीफ से अजमेर के लिए रवाना हुए।

मदीना मुनव्वरा से अजमेर तक


नबी क़रीम का हुक्म मिलने के बाद आप मुल्क शाम के रास्ते से इराक़ आये । हज़रत सरकार गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात की। गौसे आज़म सरकार का बजाहिर वो आखरी वक़्त था। रास्ते मे बड़े बड़े औलिया अल्लाह मिले | बगदाद शरीफ में ही आपके सबसे पहले मुरीद हज़रत ख्वाज़ा कुतुबद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह हुए। और ऐसे मुरीद हुए की आखिर तक शेख की सोहबत और हुजूरी में रहे. आप ईराक़ से ईरान और ईरान से अफगानिस्तान और अफगानिस्तान से पेशावर (अब पाकिस्तान) के रास्ते से लाहौर आये। रास्ते मे बड़े बड़े वाकियात हुए, बड़ी बड़ी क़रामते आपसे जाहिर हुईं जिनका बयान अगर करूं तो शायद ये किताब आपकी शान और क़रामतो से ही खत्म हो जायेगी लेकिन आपकी शान और क़रामत बयान नही हो पाएगी।

दाता गंज बख्श के आस्ताने पर रुकना लाहौर में एक बहुत बड़े क़ामिल व अकमल वली अल्लाह हज़रत सैयद अली हिज्वेरी दाता गंज बख्श रहमतुल्लाह अलैह का आस्ताना है। रास्ते मे अजमेर आते वक्त आप उनके आस्ताने पर भी गए, दाता गंज बख्श रहमतुल्लाह अलैह की शान को जानना हों तो सरकार गौसे आज़म रजिअल्लाहू तआला अन्हू का एक जुमला ध्यान में रखो कि एक मर्तबा सरकार गौसे आज़म रजिअल्लाहू तआला अन्हू की मजलिस में सैयदना अली हिज़वेरी दादा गंज बख्श रहमतुल्लाह अलैह का ज़िक्र आया तो आपने फ़रमाया "अगर हम उस ज़माने में होते तो दाता गंज बख्स के मुरीद होते" अल्लाह अल्लाह अज़ीज़ों अब हमें इस कौल से अंदाजा लगा लेना चाहिए कि हुज़ूर दाता गंज बख्श रहमतुल्लाह अलैह कितनी आला हस्ती हैं जिनके मुरीद होंने की बात सुल्तानुल औलिया गौसे आज़म कर रहैं हो । ख्वाज़ा हिन्द के जैसा वली जो तहतुश शरा से अर्शे मुअल्ला तक सबकुछ देखता हो उन्होंने दाता गंज बख्श की मज़ार अक़दस के क़दमो मे 40 दिन गुजारे है और फेज़ हासिल किया।अल्लाह वाले बुजुर्गों की कद्र जानते हैं ये उनके दर्जे और मर्तबे को पहचानते हैं हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह जानते है पैरो की तरफ अदब है आपने चालीस दिन तक क़दमो की तरफ बेठकर एतिकाफ किया और चिल्ला किया और जब दाता गंज बख्श के फेज़ो बरकात को देखा तो वो कह उठे

गंज बख्श-ए-फ़ैज़ - ए आलम मज़हर-ए-नूर-एखुदा

ना किशा रा पीर-ए-क़ामिला रा रहनुमा

(तर्जुमा ) -- ये वही सखी दाता हैं जो ख़ज़ानों के ख़ज़ाने तक़सीम फरमा देते हैं, आप नाकिशो के लिए ही क़ामिल पीर नही बल्कि क़ामिलो के लिए भी रहनुमा है आप क़ामिलो के रहबर और पीर हैं )

ये शेर किसी आम सूफी या मौलवी साहब का नही है बल्कि ख्वाज़ा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह जैसी हस्ती का है। अब एक बात आप से पूछता हूँ कि एक तरफ ख्वाज़ा गरीब नवाज जैसी हस्ती है ओर दूसरी तरफ ये चौदहवीं सदी के मुल्ले हैं जो कहते है ये हुज़ूर मरकर मिट्टी में मिल गए हैं ये कुछ दे नही सकते उधर मेरे गरीब नवाज फरमाते हैं कि ये क़ामिल औलिया अल्लाह जो अपनी क़ब्रो में सोये हुए है ये ख़ज़ानो के ख़ज़ाने बख्श देते हैं उनका फेज़ जहाँ को पहुंचता है ये अल्लाह के नूर का मज़हर हैं। अब फैसला आपको करना है कि आप सुल्तानुल हिन्द की सुनोगे या 14 सदी के मुल्लो की ।

(ads1)

अजमेर में आपके मुबारक क़दम


दाता गंज बख्श रहमतुल्लाह अलैह की मजार अक़दस सलाम पढ़कर आप देहली, पानीपत, करनाल से होते हुए अजमेर शरीफ पहुंचे | जब आप अजमेर शरीफ पहुंचे तो आपकी उम्र सैतालिस बरस की थी। अभी आपने निकाह नही किया था आपके साथ चन्द मुरीद थे, कोई जमात नही, कोई लश्कर नही, कोई असलहा ( हथियार ) नही ये अल्लाह वाले होते हैं इनको क्या ज़रूरत तीरों कमान की ?

डॉक्टर अल्लामा मुहम्मद इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है कि

उन्हें क्या ज़रूरत है तीरों कमान की 

नज़र से उड़ाएं जो दिल का निशाना

उनकी निगाह ही तलवार होती है डॉ० अल्लामा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है कि अल्लाह वाले जो होते हैं उनके पास दो चीजें होती है एक दरवेशी निगाह होती है और एक खुशरवी शमशीर होती है। यानी वो शमशीर लोहे की नही बल्कि निगाहों की होती है जो करना होता है कर देती है।

चन्द करामते


आपके अजमेर आने के बाद दीन तब्लीग का काम शुरु हुआ । एक दिन आप एक मैदान में बैठे थे जो मैदान अजमेर के राजा का था। जब शाम हो गई तो राजा के ऊँट उसी मैदान में बाँधे जाते थे। जब चरवाहों ने शाम हुई वो ऊँट को लेकर आये तो देखा कि आप उसी जगह पर आराम फरमा है चरवाहों ने कहा फ़क़ीर बाबा! उठो यहां से यह ऊँटो के बैठने की जगह है आपने फ़रमाया कि इतना बड़ा मैदान पड़ा है ऊँट कहीं भी बैठ जाएंगे हम ने ये चार गज़ जगह ले ली तो उससे ऊंटो के बैठने के लिए क्या रुकावट पैदा हो गई ?

इतनी जगह पड़ी है ऊँट इधर-उधर कहीं भी बैठ जायेंगे। उन्होंने कहा नही बाबा उठो! जहाँ तुम बैठे हो वहाँ ऊँट ही बैठेंगे तुम किसी और जगज डेरा लगाओ आपने दो तीन मर्तबा कहा मगर वो चरवाहे जाहिल थे उन्हें अदब और तमीज़ क्या है ये नही पता था। उन्होंने बदतमीजी करते हुए कहा कि तुम्हे यहाँ से उठना ही पड़ेगा-

उन्होंने कहा तुम्हे मालूम नही ये राजा के ऊँट है और राजा के ऊँटो के बैठने की जगह पर राजा के ऊँठ ही बैठेंगे उठो यहाँ से ये सुनकर मेरे गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह ने कहा कुतबुद्दीन! अपनी चटाई यहाँ से उठा कर वहां बिछा लो अब यहाँ राजा के ऊंट ही बैठेंगे। और ये कहकर वहाँ से उठ गए और राजा के ऊँठ बैठ गए।

सुबह हुई तो चरवाहे ने ऊंटो को उठाना चाहा मगर ऊंट उठे ही नही। उन्होंने ने डंडे मारे, बड़ी कोशिश की मगर वो बैठे ही रहे । चरवाहे कहने लगे इन्हें क्या हो गया है-? कहाँ ये हमारे इशारे से ही उठ जाते थे दूसरा चरवाहा कहने लगा क्या तूने सुना नही कि उस फकीर ने कहा था कि चलो अगर हमें नही बैठने देते तो यही बैठे रहें। जभी तो बैठे हुए हैं उन्होंने सोचा चलो देखे वो फ़क़ीर कौन है -- ? लोग देखने के लिए आ रहे थे कोई कह रहा था फ़क़ीर बड़ा क़ामिल है, कोई कह रहा था कि फ़क़ीर बड़ा जादूगर है उसने ऊँटो पर जादू कर दिया है ये बात राजा तक भी पहुंच गई। राजा ने कहा जाओ फ़क़ीर से माफी मांगो फ़क़ीर तो मख़लूक़ पर महरबान होते हैं और आपने बेजुबानों पर जादू कर दिया है महरबानी करके अपना जादू वापिस लो ताकि ये ऊँट उठ जाए। फिर वो चरवाहे आपके पास आये रोने लगे और माफ़ी तलब करने लगे। आपने कहा आइंदा बदतमीजी मत करना और हम जादू वगैरह नही करते फिर आपने माफ फ़रमाया उसके बाद राजा के ऊँट उठ कर बैठ गए। अब पांचों वक़्त अज़ान होती थी नमाज़ होती थी आप इस्लाम की तालीमात बयान फरमाते थे कुफ्र और शिर्क की तरदीद करते थे।

अना सागर का कासे मे सिमटना


आपकी आमद का तज़किरा अजमेर के हर कोने में फैलने लगा।आखिर ये बात राजा तक पहुंची कि एक मुसलमान फ़क़ीर आया है उस के साथ कुछ लोग हैं जो पांचो वक़्त अज़ान देते हैं और हमारे पवित्र तालाब को भरष्ट करते हैं। उसी में हाथ धोते हैं मुंह धोते हैं पैर धोते हैं और ये धर्म के खिलाफ लोग है औए हमारे तालाब को नापाक करते हैं इस लिए इन्हें यहाँ से हटाया जाए वह हमारे धर्म के खिलाफ बातें करते हैं वो कहते है मूर्तिया पूजा के लायक (योग्य) नही ये तो पत्थर है । 

हमारे खुदाओं की वो तोहीन करते है और उनकी बातों से मुतास्सिर (प्रभावित) होते हैं। हमारी हुकूमत में अगर कोई मुसलमान आकर हमारे लोगो को मुसलमान बना दे और हमारे धर्म के लोग अपना धर्म छोड़कर उस के दीन में चले जाएं ये हमारे लिए बड़े अफसोस की बात होगी। इसलिए उस फ़क़ीर को यहां से हटाया जाए उसके बाद राजा के सिपाही आते है और आपसे कहते हैं कि राजा का हुक्म आया है तुम यहाँ से चले जाओ क्योंकि तुम गोश्त खाते हो, धर्म के खिलाफ बातें करते हो हम बर्दाश्त नही कर सकते कि तुम हमारे उस मुक़द्दस (पवित्र ) तालाब में अपने पैर वगेरह धोते हो जाओ! किसी और जगह जाके अपना डेरा लगाओ

आपने इरशाद फ़रमाया इतनी दुनिया आती है कोई तालाब में नहाता है हत्ता की जानवर भी आकर पानी पी जाते हैं तो हम तो उससे बस वज़ू कर लेते हैं तो क्या हो गया-? उन्होंने कहा वो हमारे धर्म के लोग है और तुम हमारे धर्म के खिलाफ हो बस राजा का हुक्म है कि तुम्हे आइंदा उस में हाथ पांव धोने की इजाजत नही खबरदार!आइंदा तुम उसमे हाथ पेर नही धोओगे वरना हम सख्ती करेंगे।

मेरे ख्वाज़ा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह ने अपने मुरीद हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया कि शायद ये लोग हमें वज़ू न करने दे जाओ मश्कीज़ा (छोटी बाल्टी) तो भर कर के ले आओ अगर पानी की ज़रूरत पेश आई तो कुछ पानी तो पास रहेगा | जब हज़रत ख्वाज़ा कुतबुद्दीन ने मशक़ीज़ा भर लिया तो अना सागर का सारा पानी खुश्क हो गया। ये मेरे ख्वाज़ा ए हिन्द की अदना सी करामत थी जो आपने अपने तसर्रफ़ से सारे अना सागर को मश्कीजा में भर लिया । सारा पानी खुश्क हो गया। याद रखो औलिया अल्लाह के हाथ से जो क़रामते ज़ाहिर होती हैं वो अल्लाह तआला ही की क़ुदरते और कमालात होते हैं सारा पानी खुश्क हो गया, अना सागर भी खुश्क हो गया।पानी जब खुश्क हुआ तो कोहराम मच गया क़यामत बरपा हो गई इधर बच्चे बूढ़े सब प्यास की सिद्दत से बिलबिला रहे थे | हर तरफ शोर मच गया कोहराम मच गया कि फ़क़ीर ने जादू करके सारे अजमेर के पानी को ख़ुश्क कर दिया। जब बात राजा के दरबार मे पहुंची तो राजा ने वज़ीरों को बुलाकर मशवरा किया कहने लगें या तो फ़क़ीर क़ामिल फ़क़ीर है या तो वो दौरे वक़्त का सबसे बड़ा जादूगर है | अब तो इसने हमारी जिंदगी मुश्किल कर दी है। फिर जब जान पे बन आई तो ये तय हुआ कि जैसे हो सके मिन्नत (विनती) करके उन फ़क़ीर को मनाया जाए और उनसे कहा जाए वो अगर माफ नही करेगे तो अजमेर में हर घर से लाशें ही लाशें मिलेंगी क्योंकि बच्चों और औरतो में प्यास की सिद्दत से कहर बरपा था।लोग आए आपके पास रोने लगें क़दमो में गिर गए मिन्नते करने लगे बाबा रहम आपने जादू कर दिया अना सागर को ख़ुश्क कर दिया है ।।

मेरे सुल्तान ने फरमाया की हमारा जादू से कोई ताल्लुक नही है हम मुसलमान हैं हमारा दीन इस्लाम है और यही सच्चा दीन है हम यहां इस्लाम की तब्लीग के लिए आये हैं इस्लाम की रोशनी आप सबके दिल मे जगाने के लिए आए हैं हमारा जादू से कोई ताल्लुक नही है ।आपने फ़रमाया तुमने हमे वज़ू से रोक दिया था कि हम वज़ू नही कर सकते फिर आपको राजा की तरफ से वज़ू की छूट आई। आपने फिर रहम दिली दिखाते हुए कुतबुद्दीन से कहा जाओ मशक़ीजे में जो पानी है उसे अना सागर में पलट दो आपका हुक्म पाकर मशक़ीज़ा अना सागर में पलट दिया गया।पानी उबल पड़ा और देखते ही देखते सारा अना सागर पानी से लबरेज़ हो गया आजतक उस अना सागर के पानी में कमी नहीं आई है। जिस दिन आपकी ये करामत ज़ाहिर हुई है उस दिन मुतास्सिर (प्रभावित) होकर 32 हज़ार काफिरो ने इस्लाम कबूल किया।

(ads1)

आपके अक़वाल (सन्देश)


आपने अपने चाहने वालो को नसीहत फ़रमाई है जिन पर अमल करना बहुत जरूरी है क्योंकि वो सुल्तानुल औलिया ए हिन्द है आपको हिन्द का महाराजा कहा जाता है। आप वलियों के भी सुल्तान है। आप के कुछ जरूरी और मशहूर अक़वाल ये हैं

1 -- बारगाहे खुदावन्दी में नमाज़ से कुर्ब हासिल होता है, नमाज़ अब्द और माबूद के बीच राज है और मेराजुल मोमिनीन है!

2 खुदा का दोस्त वो होता है जिसमे तीन चीजे हो 

(1) -- सख़ावत दरिया जैसी 
(2)-  शफ़क़त आफ़ताब की तरह 
(3) - तवज़्ज़ो ज़मीन की तरह

3-- नेको की सोहबत नेक काम करने से बहतर और बुरे लोगो की सोहबत बदी करने से बदतर है !

4- - अल्लाह की मखलूक से मोहब्ब्त करो नफरत किसी से भी न करो!

ख्वाज़ा गरीब नवाज़ एक नज़र में अज़ीज़ों आपने अभी तक जो भी पढ़ा है आपने गौर किया है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती हसन संजरी रहमतुल्लाह अलैह एक वलीए क़ामिल, एक मोतबर आलिम थे। आप बहुत ही ज्यादा रहमदिल (दयालु) थे | आप की बारगाह में हर धर्म के लोग आते है आपने कभी भेदभाव नही किया आपने जैसा सुलूक अपने मुरीद से किया बिल्कुल वैसा सुलूक आपने गेरो से भी किया है। आप सब से मोहब्बत करते थे आपका ये कौल बहुत मशहूर है कि मोहब्बत सब से करो नफरत किसी से नही। आप ने सभी के दिलो में प्रेम, भाईचारे का परचम लहराया है। आज भी देश की बड़ी बड़ी मशहूर हस्तियां आपके आस्ताने पर जाती है और आपके वसीले से दुआएं/मिन्नते माँगती हैं आपसे हर मजहब के लोग अक़ीदत रखते हैं आप हिन्द के वलियों के सुल्तान हैं अहले हिन्द आपको अपना पेशवा मानते हैं। लेकिन हम और आप किसी वली के मक़ाम को तय नही कर स्कते ये काम बड़ो का है छोटो का नही आप ख्वाज़ा गरीब नवाज की जिंदगी से सबक ले बिलयक़ीन वो हिन्द में हमारे पेशवा है और रहेंगे आपके सदके में अल्लाह हम सबके गुनाहों को मिटा कर नेक सालेह मोमिन बनने की तौफ़ीक़ अता करे | आपकी मोहब्बत ही हम सब के लिए खुशनसीबी है! आपकी बारगाह में आला हजरत अजीमुल बरकत रहमतुल्लाह अलैह का एक शेर ज़हन में गर्दिश कर रहा है

ख्वाज़ा ए हिन्द वो दरबार है आला तेरा

नही महरूम कभी मांगने वाला तेरा

या मोईन हक़ मोईन

Post a Comment

0Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(365)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top