ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी | Khwaja Qutbuddin Bakhtiyar Kaki

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 ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी | Khwaja Qutbuddin Bakhtiyar Kaki


ख्वाजा कुतुबद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह

विलादत, नाम, नसब

आपकी विलादत 569 हिजरी और अंग्रेज़ी कैलेंडर के मुताबिक 1174 ईस्वी को गारगिस्तान में हुई है। वही कुछ रिवायातो में है कि आपकी विलादत (जन्म) बगदाद शरीफ में हुई है।

नाम, शजरा ए नसब

आपका नाम बख्तियार और पूरा नाम हज़रत ख्वाजा सैयद महम्मद बख्तियार काकी था। आपका सिलसिला ए नसब अमीरुल मोमिनीन सैयदुल औलिया मौलाए क़ायनात हज़रत अली रजिअल्लाहू तआला अन्हू से मिलता है।

आपका हसब-नसब कुछ यूं है

  • सैयद मुहम्मद कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह
  • सैयद कमालुद्दीन अलैहिर्रहमा
  • सैयद मूसा अलैहिर्रहमा सैयद 
  • अहमद अलैहिर्रहमा
  • सैयद कमालुद्दीन अलैहिर्रहमा 
  • सैयद मुहम्मद अलैहिर्रहमा 
  • सैयद अहमद अलैहिर्रहमा
  • सैयद रजीउद्दीन अलैहिर्रहमा
  • सैयद हुसैमुद्दीन अलैहिर्रहमा
  • सैयद राशिदुद्दीन अलैहिर्रहमा 
  • सैयद जफर अलैहिर्रहमा
  • सैयद नफिल वजूद अलैहिर्रहमा
  • सैयदना इमाम अली मूसा रज़ा रजिअल्लाहू तआला अन्हु
  • सैयदना इमाम अली मूसा काज़िम रजिअल्लाहू तआला अन्हु
  • सैयदना इमाम जाफर ए सादिक़ रजिअल्लाहू तआला अन्हु
  • सैयदना इमाम बाकर रजिअल्लाहू तआला अन्हू 
  • सैयदना इमाम जैनुल आब्दीन रजिअल्लाहू तआला अन्हू
  • सैयदुश सादात सरदारुल औलिया इमामुल इमाम महबूबे मुस्तफा लाडला ए फ़ातिमा सैयदना इमाम हुसैन रजिअल्लाहू तआला अन्हू
  • सैयदुल औलिया शेरे ख़ुदा मुश्किल कुशा महबूबे बदरुदुज़ा मोलाए आलमीन हज़रत अली क़रमल्लाहु वजहुल करीम
तो इस तरह से आपका ताल्लुक क़ायनात के सबसे अज़ीम खानदान से है।

तो अज़ीज़ों तज़किरा चल रहा है हज़रत ख्वाज़ा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह के मुबारक खानदान का की किस कदर आपका हसब नसब मुबारक और अज़ीम है !


लक़ब

आपकी इल्मी जहनियत और तक़वे परहेजगारी इबादत रियाजत के मद्देनजर आपको जो अलक़ाब अता हुए हैं वो यूँ है
  1. मलिकुल-मशायख
  2. क़ुतुबुल-अकताब
  3. क़ुतुबुल-इस्लाम
  4. सुल्तानुल तरीक़त
  5. बुरहानुल हक़ीक़त
  6. इमामुल आमिलीन
  7. सिराजुल औलिया।


आपकी तालीम और इबादत 

जब आपकी उम्र डेढ़ साल यानी 18 महीने की थी तो आपके वालिद का इंतेक़ाल हो गया। आपकी वालिदा(मां)जो खुद एक आलिमा थी उन्होंने आपकी इब्तिदाई(प्रारंभिक)तालीम के लिए उस वक़्त के मशहूर आलिम शेख़ अबू हिफ़्ज़ के पास भेजा। फिर जब आपकी उम्र 17 साल हुई तक एक दिन बगदाद शरीफ में ख्वाज़ा ए हिन्द मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का गुजर उधर से हुआ तो आपने उन के पास जाकर कहा ए शेख क्या में आपका मुरीद बन सकता हूँ | अज़ीज़ों यहां गौर करने वाली बात ये है कि अभी आपने सिर्फ जाहिरी तालीम ही हासिल की है उसके बावजूद आपकी नज़रे बातिन की एक झलक देखो की आपने एक नज़र देखते ही ख्वाजा गरीब नवाज को पहचान लिया कि ये क़ामिल मुर्शिद हैं | अब जरा सोचो जिस नोजवान सैयदजादे की नज़र का आलम अभी से ये था तो जिसने सारी जिंदगी ख्वाजा गरीब नवाज के क़दमो में गुजारी हो अल्लाह अल्लाह उनके मक़ाम का अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है !

फिर आपको ख्वाज़ा गरीब नवाज ने मुरीद किया इस तरह से आप ख्वाज़ा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह के पहले मुरीद व ख़लीफ़ा हैं ।

आपका नाम काकी क्यों--?

अज़ीज़ों आप सब के मन मे ये जरूर आया होगा कि जब आपका नाम बख्तियार था और आपका मुकम्मल नाम सैयद मुहम्मद हसन बख्तियार था तो आज पूरी दुनिया आपको बख्तियार काकी क्यों कहती है।

तो इसके पीछे अलग अलग रिवायत है में आपके सामने एक रिवायत पेश करता हूँ जिसके बाद से आपका नाम काकी पड़ गया।

अज़ीज़ों आपने पढ़ा है कि आपके वालिद के इंतेक़ाल के बाद से आप अपनी मां के पास रहते थे। जब आपकी उम्र 5 साल थी तब आप मदरसे में पढ़ने जाते थे आपकी वालिदा आप के लिए बहुत परेशान रहती थी वो आपको एक नेक फरमाबरदार इंसान बनाना चाहती थी । एक दिन आप मदरसा गए तो आपकी माँ ने खाना पकाया और उसे अलमारी में छुपा दिया। जब आप मदरसे से पढ़कर घर आये तो आपको रोज़ की तरह भूख महसूस हुई

आपने अम्मी जान से खाना की तलब की आपकी अम्मी जान ने कहा कि बेटा आज हमें अल्लाह रोटी देगा। ये कहकर आपको एक मुसल्ला दिया और कहा बेटा लो नमाज़ पढ़कर दुआ मांगो कि अल्लाह रोटी अता करे।आपने नमाज़ पढ़ने के बाद दुआ की फिर आपकी माँ ने कहा कि अल्लाह ने रोटी भेज दी है चलो कमरे में तलाश करते है इस तरह अमूमन ये रोज़ होता रहा। आपकी वालिदा का मकसद था कि आप अपने रब को पहचान ले । एक दिन आप मदरसे से आये उस दिन आपकी वालिदा अपने किसी रिश्तेदार के यहां गई थी उन्हें जब वक़्त की याद आयी तो वो वहां से तेज़ी से निकली रास्ते मे पहुंची तो माँ की आंखों से आंसू जारी थे उन्होंने रोते हुए कहा ए परवरदिगार आज मेरे बख्तियार की नज़र में में झूठी हो जाऊंगी उसकी तवज्ज़ो उसके रब की तरफ से हट जाएगी आज मेरी लाज रखना फिर आप घर पहुँची तो देखा कि आप सो रहे हैं। आप जब सो कर उठे तो आपकी वालिदा ने कहा आज तो मेरा बेटा भूखा होगा।आपने मुस्कुरा कर कहा नही अम्मी जान आपके न रहने के बाद मेने रोज़ की तरह नमाज़ अदा की और दुआ मांगी फिर मुझे एक रोटी पड़ी मिली मेने उसे खाया जो बहुत ही मीठी थी ऐसी रोटी मेने आजतक नही खाई बस इसी वाकिये के बाद से आपको काकी कहा जाता है और इसी नाम से आप पूरी दुनिया मे जाने व पहचाने जाते हैं! 

दिल्ली में आपकी आमद

दिल्ली में आप मेहरौली जो उस वक़्त भीड़ भाड़ शोर शराबे से दूर था वही पर अपनी ख़ानक़ाह बनाई । यहाँ पर हर धर्म के लोगो को खाना खिलाया जाता है ये एक ऐसी जगह है जहां सभी तरह के लोग चाहे अमीर हो या गरीब सभी की भीड़ जमा रहती है। आपके दर से रोज़ लँगर होता इसी शखावत को ध्यान में रखते हुए शायर लिखता है कि

देता है भीख आज भी ज़हरा का खानदान 

इंसान के ज़मीर को रुसवा किये बगैर

आप मजलिस में बयान/तब्लीग करते लोगो को इस्लाम की दावत देते। आपकी दरियादिली देखकर लोग आपसे बहुत ही मुतास्सिर ( प्रभावित) होते। आपने हमेशा सब को बराबरी का सम्मान दिया।

यतीमो/बेसहारो/गरीबो / गुनहगारों को आपने खास तवज्जो दी है |

आपका तसव्वुफ़

एक बार आप मुल्तान शहर में थे। वहां आपकी सीरत/सूरत और तसव्वुफ़ को देखकर लोग आपसे बहुत मोहब्ब्त करते थे एक दिन आपने दिनचर्या (रोजाना का काम) फ़ज़ की नमाज़ के बाद इसराक की नमाज़ पढ़ी।और फिर चाश्त की नमाज़ के लिए एक मस्जिद में तशरीफ़ ले गए वहां एक कमसिन लड़का बैठा एक किताब पढ़ रहा था उसने जब आपको देखा तो वो देखता ही रह गया ।आपने नमाज़ अदा की तो देखा वो लड़का बैठा क़ोई किताब पढ़ रहा था आपने कहा बेटे क्या पढ़ रहे हो उसने कहा बाबा जान नाफ़े पढ़ रहा हूँ आपने कहा तुम्हे बहुत नफा होगा ये सुनकर वो आपके क़दमो में गिर गया और उसने बैत होने की ज़िद की आपने फरमाया नही ये मुल्तान अल्लाह ने शेख़ बहाउद्दीन ज़करिया नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह के हवाले कर दिया है में मुल्तान में किसी को मुरीद नही करूँगा। आप अभी छोटे हो जब तालीम हासिल कर लेना फिर दिल्ली आना हम दिल्ली में मुरीद करेंगे। अज़ीज़ों जिस लड़के से आपने ये जुमला कहा वो कोई और नही बल्कि वक़्त के मुर्शिद ए कामिल वली हज़रत बाबा फरीद गंज शकर अलैहिर्रहमा थे। अल्लाह अल्लाह ये तसव्वुफ़ आपने वहां पर किसी को मुरीद नही किया सबको मना कर दिया और कहा कि ये बहाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह का इलाका है में यहां किसी को अपना मुरीद नही बनाऊंगा।

मुर्शिद से रिश्ता

आप की शान जाहिलो के समझ मे कैसे आएगी। हम अहले सुन्नत निस्बत को सबसे ज्यादा तवज्जो देते हैं और अगर ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह की निस्बत देखी जाए तो एक तो आप खुद सादात घराने से हैं और दूसरी आप उस अज़ीम हस्ती के खलीफा है जो अताए रसूल है तो आसान लफ़्ज़ों में समझिए की जिसने अपनी जिंदगी का एक अहम हिस्सा अताए रसूल ख़्वाज़ा ए हिन्द के साथ गुजारा हो उस जात के मक़ाम का अंदाज़ा हम और आप कैसे लगा सकते हैं। आप अपने पीरो मुर्शिद के सबसे चहेते थे। 

जब ख़्वाज़ा ए हिन्द को बजाहिर दुनिया से जाने का वक़्त मालूम हुआ तो आपने ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह को सारी नेमतें दे दी जो आपने अपने पीरो मुर्शिद ख़्वाज़ा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह से मिली थी और आपने कहा तुम किसी कामिल वली को ये नायाब विरासत दे देना । उसके बाद ख़्वाजा ए हिन्द ने आसमान की तरफ देखा और कहा ए अल्लाह में कुतबुद्दीन को तेरे हवाले करता हूँ ये कहकर आप एक खाट पर बैठ गए।ख़्वाज़ा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह के मन मे अपने मुर्शिद के कदम चूमने का ख्याल आया आपने ख़्वाजा ए हिन्द का क़दम चूमा फिर ख़्वाज़ा ए हिन्द ने आपको उठाया अपने सीने से लगाया फिर फातिहा पढ़ा एक बार फिर आप ख़्वाजा ए हिन्द के क़दमो में गिर गए और क़दम चूमने लगे।अल्लाह अल्लाह क़दम को चूम कर आपने क़यामत तक उन फतवेबाज़ों को ये आईना दिखा दिया है कि मुर्शिद के क़दम चूमना शिर्क नही बल्कि तरीका ए मुरीद ए कामिल है। आपक़ी जात पर लाखों सलाम मेरे काकी अल्लाह आपके सदके तुफैल हम सभी के गुनाहों को बक्श दे। आपने सभी को प्यार, इंसानियत, भाईचारे, मोहब्बत, ईमानदारी, नरमी, की तालीम दी । आप हर धर्म के लिए बहुत बड़ा मक़ाम रखते हैं आज भी आपके आस्ताने पर हर धर्म के लोग हाजिरी देते हैं। और फेज़याब होते रहते हैं और ता क़यमात तक आपके ज़रिए ख़्वाजा ए हिन्द, मौलाए क़ायनात का फैज़ान हम सब तक पहुंचता रहेगा।

आपकी चन्द क़रामते

यूं तो आप जिस मक़ाम पर फ़ायज़ थे आप का हर दिन क़रामतो से भरा रहता लेकिन आपकी चन्द क़रामतो का यहां ज़िक्र करना मेने मुनासिब समझा है क्योंकि इन हस्तियों की बेशुमार क़रामते हैं जिनका तज़किरा किसी एक किताब में करना मुमकिन ही नही है ।

मुरीद को गुनाह से बचाया

आपकी नज़र को क़ुदरत ने वो कशिश और असर पैदा फ़रमाया था कि आप की नज़र जिस पर पड़ जाती थी वो वली बन जाता था । हज़ारो फ़ासिक़ / काफ़िर आपकी निस्बत पाकर मुत्तक़ी बन गए | बेशुमार सलेहीन ने आपकी रूहानी बरकात से बड़े बड़े दरज़ात हासिल कर लिए।

एक बार एक शख्स घर से ये सोच कर रवाना हुआ कि आपके पास आकर तौबा करूं लेकिन रास्ते मे एक फहासा(बदचलन) औरत उसके हमवार हो गई। जो चाहती थी कि किसी तरह इस मर्द से ताल्लुक क़ायम हो जाये। कुछ देर बाद जब औरत उसके पास बैठ गई जहाँ उस आदमी ने उसे छूने की कोशिश की तो एक आदमी ने उन्हें थप्पड़ मारा और उन्हें कहा बदतमीज तू आज ही ख्वाज़ा बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह के दर पर माफी मांगने जा रहा है और गुनाह कर रहा है फिर उस आदमी ने तौबा की और जब वो आपके पास आया तो क़दमो में गिर गया और माफी मांगी।

15 पारे माँ की पेट से हिफ़्ज़ कर लिए

जब आपकी उम्र 4 साल 4 माह हुई तो आपने 15 पारे अपने उस्ताद को सुनाए तो उस्ताद ने कहा और और पढ़ो तब आपने कहा कि बस मेने इतने ही पारे अपनी माँ के पेट से हिफ़्ज़ किये थे | क्या इससे भी बढ़कर कोई क़रामत हो सकती है यानी मां के पेट से आप वली थे | जरा गौर करो अज़ीज़ों और क़ुर्बान जाओ ख्वाज़ा बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह पर आपने माँ के पेट से ही 15 पारे हिफ़्ज़ कर लिए थे उसके बावजूद आप एक क़ामिल मुर्शिद की तलाश में थे। और आपने फ़र्ज़ तो दूर की बात कभी नफ़्ल तक नही छोड़ा आप एक दिन में 95 रकत नफिल नमाज़ पढ़ते थे।

आप पर झूठा इल्ज़ाम का लगना और ख्वाजा ए हिन्द का दरबार मे आना

एक बार एक औरत बादशाह के दरबार मे आई और चींख चींख कर रोने लगी। बादशाह ने पूछा क्यों रो रही हो उस औरत ने बताया कि एक इंसान ने मेरे साथ गलत काम किया है जिसका बच्चा मेरे पेट मे पल रहा है और अब वो इस बच्चे को अपनाने से इंकार कर रहा है।बादशाह अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि मेने सल्तनत शरीयत के तहत संभाली है शरीयत से हटकर कोई काम हो में कभी बर्दाश्त नही करूँगा। तुम मुझे उस आदमी का नाम बताओ उसकी गर्दन न उड़वा दूं तो कहना ! उस औरत ने कहा तुम उसका कुछ नही कर सकते क्योंकि वो कोई और नहीं बल्कि आपके पीरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह है (नउजबिल्लाह) । ये सुनकर बादशाह के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई | बादशाह ने आसमान की और नज़रे उठाकर कहा या अल्लाह ये कैसा इम्तिहान है एक कुतुब पर ऐसा नाजेबा इल्ज़ाम अल्लाह अल्लाह | फिर आपको दरबार मे बुलाया गया जब आप लाठी के सहारे दरबार मे पहुंचे तो सब आपके अदब में अपनी अपनी कुर्सी से उठने लगे आपने फ़रमाया कि तुम सब बैठे रहो आज में पीर बनकर नही बल्कि मुजरिम बनकर आया हूँ। आपकी आंखों में आंसू थे मानो दिल्ली की हर गली रो रही थी आज दिल्ली का पीर वक़्त का क़ुतुब दिल्ली के दरबार मे अल्लाह अल्लाह इतना दुःख भरा मंजर आप की आंखों में आँसू भर आए उन आँसुओ को देखकर सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमस तड़प गए। अज़ीज़ों जरा सोचो किसी मुरीद के सामने उसके पीर पर ऐसा इल्ज़ाम क्या मुरीद अपने को रोक पायेगा लेकिन क़ुर्बान जाओ सुल्तान अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह की जात पर आपने अपने आप को सम्भाला।फिर ख्वाजा कुतबुद्दीन ने कहा रब जानता है में तुझे नही जानता हूँ, ये सुनकर औरत रोने लगी और फिर उसने इल्ज़ाम लगाया तब आपने कहा कि गवाह है तेरे पास तो चार कलमा पढ़ने वाले खड़े हो गए कहा हां मेने इस औरत को जाते भी देखा है और आते भी। अज़ीज़ों जुमले पर ध्यान दो 4 कलमा पढ़ने वाले अल्लाह के वली के खिलाफ यानी कलमा पढ़कर कोई मोमिन नही होता इस वाकिये से ये बात भी जाहिर हो गई।

फिर आप ने फरमाया की बादशाह मुझे एक रात की मोहलत दे दे।ये सुनकर बादशाह रोने लगा उसने फरमाया बाबा में नोकर हूँ आपका | आप पैदल आए। आप पैदल गए।

दिल्ली के असल बादशाह ख्वाज़ा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह ने अजमेर की तरफ मुंह किया और मदद के लिए आवाज़ दी क्योंकि उनका अक़ीदह था ख्वाज़ा ए हिन्द हयात है ( ज़िंदा है ।

बेखबर हो जो गुलामो से वो आक़ा क्या है

आपने फ़रमाया ए मुर्शिद में कोई लावारिस तो नही हूँ, मेने सारी जिंदगी आपका ही नाम जंपा है। फिर आपको नींद आ गयी तो आपने ख्वाब में देखा कि ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह ने कहा ए कुतबुद्दीन कल में आऊंगा मेरा इंतज़ार करना।

कल सुबह हुई आप दरबार गए कहा तीन दिन की मोहलत चाहिए अजमेर से ख्वाजा गरीब नवाज़ खुद आएंगे फिर तीन दिन बाद जब आप दुबारा पहुँचे तो अजमेर से सारा क़ाफ़िला आया लेकिन ख्वाजा गरीब नवाज नही आये मगरिब की अज़ान हुई तो आप नमाज़ पढ़ाने के लिए आगे आये आप रो रहे थे क्योंकि कल आखिरी वक्त था उसके बाद बादशाह मजबूरन कोई भी मोहलत नही दे सकता था उसके बाद जब आपने सलाम फेरा तो देखा कि ख्वाज़ा ए हिन्द की पीछे नमाज़ पढ़ रहे हैं और अभी उनकी दो रकत बाकी है ख्वाजा गरीब नवाज़ ने सलाम फेरा तो आप पर नज़र पड़ी आप दौड़ कर उनके सीने से लगकर रोने लगे। कहा ए मुर्शिद में शहज़ादा था आपने कहा था खुश्क रोटी खाना मेने ख़ुश्क रोटी ही खाई है, आपने कहा था फाके करना तो मैने किये हैं आपने कहा था वतन छोड़ कर मत जाना में नही गया इतना सुनने के बाद ख्वाजा गरीब नवाज ने जलाली अंदाज़ में कहा ए क़ुतुब ये बता तुम ज्यादा इज्जत वाले हो या यूसुफ अलैहिस्सलाम, तुम ज्यादा पाक दामन वाले हो या माँ आयशा सिद्दीका रजिअल्लाहो तआला अन्हा ये कोई सूफ़िया का तरीका है रोने का । 

ये सुनकर कुतबुद्दीन काकी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है में अभी आपके सामने ही रोया हूँ मुर्शिद | कहा जाओ बादशाह से कह दो की सुबह फ़ज़र की नमाज़ के बाद में खुद आऊँगा। सुबह अदालत लगी तो ख्वाजा गरीब नवाज ने ख्वाज़ा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह का हाथ पकड़ा।उन्होंने देखा कि एक मज़मा लगा है तो ख्वाज़ा गरीब नवाज भी रोने लगे आपने पूछा ए गरीब नवाज आप क़यो रोते हो तो गरीब नवाज ने फरमाया कि ये जो लोग आज इकट्ठा हुए है ये इतने बदबख्त है कि मेरे क़ुतुब की रुसवाई देखने आये हैं | ख्वाज़ा ए हिन्द ने क़ाज़ी से कहा कि आप तो जानते है क़ाज़ी ने कहा ख्वाज़ा साहब गवाह लाओ।फिर जब गवाह आये तो ख्वाजा गरीब नवाज ने कहा तुम हो मेरे क़ुतुब पर इल्ज़ाम लगाने वाले जब कोई जवाब नही दिया तो बादशाह ने कहा बोलो नही तो सर कलम कर दिया जाएगा। फिर उन गवाहों ने कहा हां मैने उस औरत को तहज्जुद के वक़्त जाते और आते देखा | उसके बाद वो औरत आई आपने कहा चलो इस बच्चे से ही मालूम करते हैं कि इसका बाप कौन है ये कहकर ख्वाजा गरीब नवाज सजदे में चले गए और अपने रब से फरमाने लगें कि मौला तेरा फरमान है कि मेरे नाना की उम्मत के उलेमा बनी इस्राइल के नबियो की तरह होंगे अगर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के लिए बच्चा बोल सकता है तो मेरे

क़ुतुब के लिए भी बोल सकता है फिर वो उठे औए उस औरत के पास गए लड़के के चेहरे से कपड़ा खींचा और कहा ए बच्चा तू खुद बोल दे कि तेरा बाप कौन है--? दो महीना का बच्चा उठकर बैठ गया और कहा अस्सलामुअलैकुम या वलीउल्लाह जब ये लफ्ज़ अदा किए तो नारे लगने लगे औरत बेहोश हो गई। आपने फरमाया की मुझे सलाम न करो मेरे क़ुतुब के बारे में बताओ। वो बच्चा बोलने लगा और कहा ये मजमे में जो फला सरदार बैठा है ये मेरा बाप है और ये क़ाज़ी भी इस साजिश का हिस्सा है। ये सुनना था कि आपने क़ुतुब का हाथ पकड़ा लेकर बाहर चले आये। इतने में बादशाह भी आपके पीछे पीछे आये और सब क़दमो में गिर गए आपने कहा में अपने क़ुतुब को अजमेर ले जा रहा हूँ बादशाह ने कहा हुज़ूर शरीयत की तामीर के लिए इन्हें यहां रहने दो फिर आपने कहा ठीक है जाओ क़ुतुब अब क़यामत तक कोई भी तुम्हे रुसवा नही कर सकेगा। इसके बाद आप अजमेर चले गए।

महिफल ए शमा के शौकीन

अज़ीज़ों आपको बता दे सिलसिला ए चिश्त में महफिलए-शमा जायज है और महफ़िल-ए-शमा के ताल्लुक से लताएफे अशरफी, सना सनाबिल जैसे मोतबर किताबो में इसकी अज़मत बयान की गई है । ख्वाज़ा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह को महफिल-एशमा का बहुत शौक था। 14 रबिउल अव्वल (27 नवम्बर 1235 को आपने महफ़िल-ए-शमा में भाग लिया आप वज्द की हालत में थे और क़व्वाल नसीरुद्दीन ने जैसे ही पढा

कुश्तगान-ए कंजर-ए-तस्लीम रा

हर ज़मान अज्ज रौब जान ए दिग्र अस्त


( For the victims of the sword of divine love:

There is a new life every moment from the unseen )

आप इस क़लाम को सुनकर वज्द में आ गए फिर चौथे दिन आप का बाजहिर इंतेक़ाल हो गया। आपकी दरगाह मेहरौली में है। आपके ताल्लुक से बहुत मशहूर किस्सा है जब क़व्वाल एक शेर पढ़ता आप की रूह परवाज कर जाती फिर जब क़व्वाल दूसरा शेर पढ़ता आपकी रूह वापिस आ जाती ये सिलसिला चार दिन तक चलता रहा। फिर आपने क़व्वाल को रुकने का इशारा किया और बजाहिर इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

नमाज़ ए जनाजा

जब आपके मुरीद ने आपको ग़ुस्ल देकर जब आपका नमाज़ ए जनाजा पढ़ाने की बात आई तो आपकी वसीयत के मुताबिक वही इंसान आपकी नमाज़ ए जनाजा पढ़ायेगा जिसने कभी असर की सुन्नत नमाज़ नही छोड़ी। जिसने बे वजू कभी आसमान की तरफ न देखा हो, जिसने कोई हराम काम न किया हो 

जब ये वसीयत सुनाई गई तो सब पीछे हट गए फिर जब तलाश हुई ऐसे कमाल वाले शख्स की तो वो कोई और नही आपके ही मुरीद हज़रत सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमश रहमतुल्लाह अलैह थे।आप रोने लगे क्योंकि आज एक राज़ से पर्दा उठ गया था। तो अज़ीज़ों ये है अल्लाह के वली जिनकी इबादतों और तक़वे परहेजगारी है के बल पर आज भी ये हमारे बीच ज़िंदा है और क़यामत तक जिंदा रहेंगे ।

आपकी मज़ार सबसे हटकर

यूं तो अमूमन वलियों के आस्ताने जैसे होते है आपका आस्ताना उससे थोड़ा हटकर है आपका आस्तान समतल है।यानी काफी दूर तक फैला हुआ है तो इसके पीछे भी एक राज है अज़ीज़ों एक बार आपके ख़लीफ़ा बाबा फरीद गंज शकर अलैहिर्रहमा पाक पटन से आप के आस्ताने पर तशरीफ़ लाये और आपसे आपका आस्ताना बनाने की इजाजत मांगी। आपने इजाजत दे दी फिर आप मिट्टी डालने लगे मिट्टी डालते डालते मगरिब की अज़ान हो गई तब आपको पीछे से आवाज़ आई बस कर फरीद अब नमाज़ का वक़्त हो गया फिर आप मिट्टी को उसी हालत में छोड़कर नमाज़ पढ़ने चले गए उसके बाद से आजतक आपका आस्ताना ऐसा ही है जहां से आज सारा हिंदुस्तान फेज़ पाता है और क़यामत तक पाता रहेगा जब भी सिलसिला ए चिश्त का ज़िक्र आएगा आपका नाम ज़हन में गर्दिश करने लगेगा। 

अल्लाह आपके सदके तुफैल हम सबको 

नेक सालेह मोमिन बनने की तौफ़ीक़ अता करे।

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