ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया | Hazrat Nizamuddin Auliya
हज़रत ख़्वाज़ा निजामुद्दीन औलिया
विलादत, नाम, नसब
आपकी विलादत 1238 ईस्वी में हिंदुस्तान के राज्य उत्तर प्रदेश के मशहूर कस्बा बदायूं शरीफ में हुई । आपका असल नाम मुहम्मद था। आपके वालिद का नाम सैयद अहमद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह था । वही आईने अक़बरी (दीने इलाही) में आपके वालिद का नाम अहमद दानियाल भी लिखा मिलता है आपक़ी वालिदा (माँ) का नाम सैयदा जुलैख़ा था।
शजरा ए नसब
आप दुनिया के सबसे अज़ीम मर्तबे वाले खानदान यानी सादात खानदान के फ़रज़न्द थे | आप वालिद और वालिदा दोनों तरफ से हुसैनी सैयद हैं। आपके नाना सैयद अहमद अरब मुल्क और दादा सैयद अली बुखारा से हिजरत करके लाहौर आये फिर लाहौर से बदायूँ। आपके वालिद बदायूँ के क़ाज़ी (चीफ जस्टिस) थे। इसलिए घर की माली हैसियत ठीक ठाक थी ।
आपका शजरा ए नसब
- हज़रत ख़्वाज़ा निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत सैयद अहमद रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत सैयद अली रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत सैयद अब्दुल्लाह बुखारी रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत सैयद हुसैन बुखारी रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत सैयद अली बुखारी रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत सैयद अहमद बुखारी रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत सैयद अबी अब्दुल्लाह बुखारी रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत सैयद अली असगर बुखारी रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत सैयद जाफर बुखारी रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत सैयदना इमाम अली-अल नकी रजिअल्लाहू तआला अन्हु
- हज़रत सैयदना इमाम अल तकी रजिअल्लाहू तआला अन्हु
- हज़रत सैयदना इमाम अली मूसा रज़ा रजिअल्लाहू तआला अन्हु
- हज़रत सैयदना इमाम मूसा काज़िम रजिअल्लाहू तआला अन्हु
- हज़रत सैयदना इमाम जाफर सादिक रजिअल्लाहू तआला अन्हु
- हज़रत सैयदना इमाम बाकर रजिअल्लाहू तआला अन्हु
- हज़रत सैयदना इमाम जैनुल आब्दीन रजिअल्लाहू तआला अन्हु
तो अज़ीजो इस तरह से हज़रत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह उस गुलशन के चमन है जिनके बारे में आला हजरत अजीमुल बरकत ने कहा है कि
तेरी नस्ले पाक में है बच्चा बच्चा नूर का
तू है ऐन ए नूर तेरा सब घराना नूर का
(नोट-- ) अज़ीज़ों आजकल एक बहुत बड़ा फितना ये खड़ा हो गया कि अक्सर अवाम ये समझती है कि यहाँ पर नूर से मुराद सफेद रंग है बल्कि तारीख साहिद ( गवाह है कि सादात काले भी होते है और साँवले भी तो इस तरह से यहां पर जो नूर है वो नूर ए बातिन है न कि रंग का गौरा होना। अगर रंग का गोरा होना ही सादातो की पहचान है तो कश्मीर, व दुबई, इंग्लैंड में ज्यादातर लोग गोरे हैं तो क्या वो सब सादात है नही बहरहाल आप सब यहां ये समझे की सैयद काले और साँवले रंग के भी हो सकते हैं।
आपका बचपन
आप जब 5 साल के हुए तो आपके वालिद सैयद अहमद बदायूंनी रहमतुल्लाह अलैह का इंतेक़ाल हो गया। फिर आपकी वालिदा ने आपकी परवरिश की । आपकी एक बहन भी थी आप बचपन ही से बेहद ज़हीन (बुद्धिमान) थे।
तालीम और इल्मी दबदबा
यूं तो अमूमन लोग ये समझते हैं कि वली अल्लाह के पास इल्म नहीं होता है बस तक़वा और परहेजगारी होती है अरे जाहिल इनके पास तो वो इल्म होता है कि जिसका हजारवा हिस्सा जाकर मौलवी को नसीब होता है इसलिए इनके जरिए किये गए काम हम अहले सुन्नत क़यामत तक याद करते रहेंगे क्योंकि तू जिस शरीयत का डर दिखाकर भोले भाले सूफिया पर फतवा कशी करता है इतना याद रख की सूफिया ने कोई नया तरीका अपने पास से नही ईजाद किया है बल्कि 1400 साल से आजतक हमे ख्वाज़ा ए हिन्द, ख्वाज़ा निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह, सरकार आला हजरत ने जो तरीक़ा दिया है वही तरीक़ा हम आज भी जारी व सारी रखे हुए हैं। क्या उनसे ज्यादा शरीयत तुझे पता है इसलिए
अज़ीज़ों किसी के बहकावे में न आये औलिया अल्लाह के दामन को मजबूती से पकड़े रहें और उनकी जिंदगी की तर्जुमानी बनकर खुद भी क़ामयाब रहो और राह से
भटके हुए लोगो को भी कामयाब करो। आप तालीम के लिए सबसे पहले मौलाना सादी रहमतुल्लाह अलैह जैसे वली के पास गए उस ज़माने में मौलाना सादी रहमतुल्लाह के बारे में एक करामत बहुत मशहूर थी कि जो भी आपके पास पहला पारा हिफ़्ज़ कर लेता था वो मरने से पहले हाफिज ए क़ुरआन जरूर बनता था ।जब आप मौलाना सादी रहमतुल्लाह अलैह के पास गए तो आपने पहला पारा पढा और हिफ़्ज़ किया और फिर फिर मुअर्रेखीन लिखते है कि उसके बाद आपने 20 साल तक कुछ नही पढा (मतलब क़ुरआन हिफ़्ज़ के ताल्लुक से) और दीगर तालीम हासिल की | आपने कदूरी शरीफ मौलाना अलाउद्दीन से पढ़ी उसके बाद मौलाना शमसुद्दीन से मकामाते हरीरी पढी और फिर आपने मेहनत करके 40 मक़ामात जुबानी याद कर लिए। बाद में आपने इतना पढ़ा की सारी किताबें आपको याद हो गई और आप मुनाजिर ए आज़म बन गए। हर उलूम पर आपका क़ब्ज़ा था मानो मौला अली का इल्म आपको विरासत में मिल गया था। आपको क़ुरआन और हदीस का तर्जुमा आता था। आपने 16 साल तक पढ़ा। हर शू आपके इल्म का डंका बजने लगा। अल्लाह अल्लाह अज़ीज़ों गौर करो ये होते है अल्लाह वाले आज लोग ये समझते है उन्होंने तालीम नही हासिल किया अरे नादान 4 किताबे पढ़कर तू फतवा बाज़ी करने लगा जबकि उस वक़्त महबूबे इलाही को क़ुरआन का तर्जुमा/तफ़सीर और सारे उलूम आते थे।
पीरो मुर्शिद
आपने पहले भी पढ़ा है कि इल्म कितना भी हो जाये इंसान तबतक क़ामयाब नही हो सकता है जबतक उसे क़ामिल पीर नही मिल जाता इसी तरह आप भी इल्म का समंदर थे लेकिन आपको तलाश थी उस क़ामिल पीर की जो आपको हक़ से मिला दे। फिर आपकी मुलाकात बाबा फरीद गंज शकर रहमतुल्लाह अलैह से हुई उन्होंने आपको अपना मुरीद बनाया | मुरीद बनने के बाद आपने 6 पारे बाबा फरीद गंज शकर रहमतुल्लाह अलैह से पढ़े।आपने मारिफुल आरिफ जैसी तसव्वुफ़ की आला किताबो में से एक है इसको पढ़ा ये किताब सिलसिला ए सोहरवर्दी के बानी शेख सहाबुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने लिखी थी। आपको क़ाज़ी बनने का बहुत शौक था।
बदायूँ से दिल्ली
जैसा कि मैने पहले ही ये लिखा है कि आप की पैदाइश उत्तर प्रदेश के शहर बदायूँ शरीफ़ मे हुई थी ।
जब आप सब उलूम पढ़ चुके थे आपने बदायूं छोड़कर देहली (दिल्ली) जाने का फैसला किया। पहले आप खुद दिल्ली आए आपने कुछ दिन वहाँ रहकर दिल्ली का माहौल देखा फिर आप घर गए और वहां से आप आपकी वालिदा और एक बहन और उनके बेटो के साथ दिल्ली मुस्तक़िल रहने के लिए आए | आप सबसे पहले हज़रत अमीर ख़ुसरो रहमतुल्लाह अलैह के मकान में रुके उस वक़्त उनके मामू कहीं गए हुए थे फिर अचानक से वो वापिस आ गए अब मज़बूरन आप रहमतुल्लाह अलैह ने वहां से हिजरत की और शेख सदरुद्दीन के घर पर रुके फिर वहां से सादगुलाबी के घर पे कुछ दिन रुके उसके बाद सराय रक़ाबदार में कुछ दिन क़याम रहा फिर आप शेख शमसुद्दीन के घर पर रुके इतनी जगह रहने के बाद आपने एक जगह क़याम किया। उस वक़्त आपकी उम्र 16 साल थी आप वहां जामा मस्जिद में इबादत करते फिर जो वक़्त मिलता उसमे थोडा काम करते जो मिलता लाकर वालिदा के सामने पेश कर देते इस तरह से आपके वो दिन बहुत मुश्किल से गुजरे है फिर भी आपके इल्म / इबादत में एक जर्रा भर भी फ़र्क़ नही आया।
आपके नाम मे औलिया क्यो ?
अज़ीज़ों आपने पहले भी पढ़ा है और मैने भी शुरू में आपका नाम ख्वाज़ा निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह लिखा है। आओ आज जानते हैं कि आखिर आपके नाम के आगे औलिया क्यों लगता है --?
अहले इल्म और कवायद (ग्रामर ) का जानने वाला शख्स जानता है कि वली से मुराद है एक वली के लेकिन औलिया से मुराद है एक से ज्यादा वली लेकिन आप अकेले है तो आपके नाम के आगे औलिया क्यों इसके पीछे भी कई रिवायात है जिसमे ये रिवायत सबसे ज्यादा मशहूर है।
दरसअल इस उनवान(टॉपिक) पर अल्लामा मुख्तार शाह नईमी साहब फरमाते है कि आपका जो नाम है वो यूं है "ख्वाज़ा निजामुद्दीन महबूबे औलिया रहमतुल्लाह अलैह " यानी आपके नाम मे औलिया से पहले महबूब भी था जिसे आज साइलेंट गायब कर दिया है बस यही वजह से की आज तक आपको सिर्फ ख्वाज़ा निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह ही कहा जाने लगा।
(नोट-- ) ठीक इसी तरह बहुत ही ज्यादा मशहूर पीराने पीर पर भी उलेमा फरमाते है कि ये लफ्ज़ ठीक नही है बल्कि इस लफ्ज़ की जगह पर पीरे पीरां था लेकिन चूंकि वो नाम लेने में आसानी होती है बस इसीलिए ये नाम इस तरह से लिये जाते हैं खैर इससे कोई नुकसान नही है बस आपकी जानकारी के लिए लिखना जरूरी था )
महबूबे औलिया क्यों-?
आप को महबूबे औलिया कहा जाता है जिसका मतलब होता है (वलियों का महबूब) अब आपके मन मे ये सवाल आया होगा कि सिर्फ आपको ही क्यों महबूबे औलिया कहा जाता है तो आइए इसका भी राज जानते हैं। जब आप जेरे तालीम थे तो आपके उस्ताद अलाउद्दीन साहब ने देखा कि आपने सदूरी शरीफ खत्म कर ली है तो उन्होंने आपकी दस्तार करने की बात कही आप घर गए अपनी वालिदा से इजाजत मांगी आपकी वालिदा ने इजाजत दे दी फिर आपकी दस्तार बंदी की रस्म शुरू हुई | उलेमा के साथ वली अल्लाह और सुफिया की जमात बैठी थी। जब आपके सर पर पगड़ी बांधी जाती जितनी बार आप घूमते उतनी बार जानबूझकर किसी न किसी वली के कदम पर गिर जाते तो बोसा ले लेते अल्लाह अल्लाह. आपकी ये अदा वलियों को बहुत पसन्द आयी उन्होंने आपको दुआएं दी।
वहीँ जब आपके पीरो मुर्शिद हज़रत बाबा फरीदगंज शकर रहमतुल्लाह अलैह ने आपको खिलाफत व इजाजत दी तो उस वक़्त वहां पर सारे औलिया अल्लाह मौजूद थे।सबने अपनी मोहब्बत का इज़हार किया और फिर तभी से आपका लक़ब महबूबे इलाही हो गया।
अल्लाह अल्लाह ये मक़ाम है मेरे महबूबे इलाही का तारीख में आपका कोई सानी नही मिलता। उसके बाद ये सादगी की आप के सर पर जब दस्तार बांधी जाती तो आप उन औलिया अल्लाह के क़दमो में गिर जाते जिन्हें आज तारीख जानती तक नही है यानी तकब्बुर का नामो निशान आप के करीब नहीं था। जो वक़्त का मुनाजिर ए आज़म हो हर उलूम पर कब्ज़ा हो उसके बाद ये सादगी हो । सिलसिला ए चिश्त आप पर नाज़ करता है। सिलसिला ए चिश्त एक नज़र में
- हज़रत अबू इस्हाक़ शामी रहमतुल्लाह अलैह
- हजरत अबू अहमद अब्दल रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत अबू मुहम्मद बिन अबी अहमद रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत अबू यूसुफ बिन सामान रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत ख्वाज़ा मौदूद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह
- ख्वाज़ा शरीफ़ ज़नदनी रहमतुल्लाह अलैह
- ख्वाज़ा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह
- ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती संजरी अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह
- ख्वाज़ा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह
- बाबा फरीद गंज शकर रहमतुल्लाह अलैह
- हज़रत ख्वाज़ा निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह
आपकी चन्द क़रामते
आम ज़हन बुजुर्गों के हालात में करामत जरूर तलाश करता है, अहले सुन्नत व जमाअत के अक़ाएद हैं कि तमाम किताबो में निहायत साफ शफ्फ़ाक ये इबारत जरूर मिलती है कि "क़रामातुल औलियाए हक़" यानी औलियाए क़राम की करामत हक़ है। और ये तमाम अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदह है कि महबूबाने खुदा से ऐसी चीजें सादिर ( ज़ाहिर हुई है और होती रहती हैं जो समझ से बाहर है। मसलन मुर्दों को जिंदा कर देना, पैदाइशी अंधे को रोशनी दे देना और कोढी के कोढ़ को दूर कर देना, कम खाने में काफी लोगो को आसूदा ( भर पेट) कर देना | बांझ का साहिबे औलाद हो जाना।ज़मीन पर चलने की तरह दरिया पर चलना, हवा में परवाज करना वगेरह.
हज़रात सहाब-ए- अखियार, ताबेईन अबरार, उलमाए रब्बानीन,औलियाए सलेहीन से जो क़रामते ज़ाहिर हुई है ये सब हुज़ूर रसूले दो जहां सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के मोजिज़ात मुबारका के ही फुयूज़-व-बरकात है।
दीनार और दरहम के हौज़
महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में एक बार एक शख्स मुलाकात की गरज से हाजिर हुआ उसके हाथ मे पैसे की एक थैली थी आप उस वक़्त वजू फ़रमा रहे थे जब आप वजू कर चुके तो वो शख्स आप के पास आया और कहा हुज़ूर ये कुछ पैसे है में इसे आपके मदरसे में बतौर हदिया (डोनेशन देना चाहता हूँ आप ने उस शख्स की थैली से सिर्फ एक पैसा ले लिया और कहा हमारे लिए इतना ही काफी है बाकी पैसा तुम अपने घर मे ले जाकर अच्छे कामो में लगाओ। जब आपने उसकी थैली उसे वापिस कर दी तो उस शख्स ने गुरूर भरे लहजे में कहा सरकार पूरा पैसा ले लीजिये वैसे भी हम मालदारों की बदौलत ही आप लोगो का मदरसा चलता है इतना सुनना था कि ख्वाज़ा निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह को जलाल आया आपने कहा नादान जब तू अल्लाह की नाफरमानी करता है, ना शुक्री करता है तब तेरे पास इतनी दौलत है तो सोच यहां मदरसे और ख़ानक़ाह में तो हर वक़्त अल्लाह का ज़िक्र होता है हमारे पास कितनी दौलत होगी। ये कहने के बाद आपने उससे कहा इस हौज़ की तरफ देख जब उस शख्स ने हौज़ की तरफ देखा तो बेहोश हो गया। उसके होश में आने के बाद लोगो ने पूछा हौज़ की तरफ देखने के बाद क्यों बेहोश हो गया उस शख्स ने जवाब दिया कि जब मैने हौज़ की तरफ देखा तो मुझे पूरा हौज़ पानी की जगह दीनारों और दरहम से भरा हुआ दिखाई पड़ा।
नदी में रास्ता बन गया
एक दिन सख्त बारिश हो रही थी तभी हज़रत ख्वाज़ा निजामुद्दीन औलिया रहमततुल्लाह ने अपने एक मुरीद को बुलाया और कहा जमुना नदी के उस पार एक क़ुतुब आराम फरमा हैं तुम जाओ और खीर खिलाकर वापिस चले आना। मुरीद ने कहा कि हज़रत बीच मे तो नदी है और कोई दूसरा रास्ता भी नज़दीक में नही है तो में कैसे जाऊंगा।आपने फ़रमाया जब जमुना के किनारे जाना तो कह देना कि में उसके पास से आया हूँ जो कभी बीवी के पास नही गया ये सुनकर मुरीद का दिमाग पलट गया उन्होंने सोचा की हज़रत की तो शादी भी हो गई और औलाद भी है लेकिन मुरीद ने एहतराम की वजह से आपसे कुछ न पूछा।जब वो नदी के किनारे पहुँचा तो वही बात कही जो महबूबे इलाही ने कही थी। मुरीद ने जैसे ही कहा उसके बीच से रास्ता बन गया फिर वो मुरीद रास्ते से नदी के उस पार गए और क़ुतुब क़ो खीर खिलाई। फिर जब खीर खिलाकर वो मुरीद वापिस लौट रहा था तो क़ुतुब ने कहा जाओ जमुना से कह देना की में उस के ने पास आया हूँ जिस ने कभी कुछ भी नही खाया है। ये सुनकर मुरीद का दिमाग चकरा गया क्योंकि उसने अपने हाथ से उन क़ुतुब को खीर खिलाई थी । बहरहाल उसने जमुना से वही बात कही जो क़ुतुब ने कही थी उसके बाद वो महबूबे इलाही के पास आ गया। लेकिन उसके दिमाग मे ये चल रहा था एक दिन मौका पाकर उसने महबूबे इलाही से पूछ ही लिया कि सरकार ये क्या माज़रा था आप कह रहे थे कि में उसके पास से आ रहा हूँ जो आजतक अपनी बीवी के पास नही गया और उन क़ुतुब ने भी कहा कि कह देना में उस के पास से आ रहा हूँ जिसने आजतक कुछ नही खाया । ये सुनकर महबूबे इलाही ने मुस्कुरा कर जवाब दिया कि हम लोग नफ़स के लिए कुछ भी नही करते है जो भी करते है रब की रज़ा के लिए है उसके लिए खाते है और उसी के लिए बीवी से मिलते है।अल्लाह अल्लाह ये शान है अल्लाह वालो की ।
( मलफूजाते ईमान )
एक आशिक धोबी
हज़रत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह एक जुमला अक्सर कहा करते थे कि हमसे तो बेहतर धोबी का बेटा निकला और फिर आप वज्द में ज़मीन में गिर जाते । एक दिन आपके मुरीदों ने पूछा हज़रत ये क्या मामला है आपने फ़रमाया एक मियां बीवी जो धोबी थे महल में आते थे कपड़े धुलते थे उनका एक बेटा था जो माँ-बाप के कामों में हाथ बंटाता था | वो शहज़ादी के कपड़े धोते धोते उसके इश्क़ ने मुब्तिला हो गया वो शहज़ादी के कपड़े अलग रखता उन्हें धोता और उन्हें अच्छी तरह से रखता। उधर उसके वालिद ने जब ये माजरा नोटिस किया तो कहा कि ये लड़का शहज़ादी के इश्क़ में पड़ गया है और पूरे खानदान को मरवाएगा। इसके बाद उसके बाप ने उसे नोकरी से हटा दिया। जिसके गम में वो लड़का बीमार रहने लगा और एक दिन इंतेक़ाल कर गया ।
एक दिन शहज़ादी ने कहा कि मेरे कपड़े कौन धोता है तो उसकी मां ने कहा में धोती हूँ फिर उसने कहा पहले कौन धोता था तो ये सुनकर उस आशिक लड़के की मां रोने लगी और पूरा वाकिया सुनाया। ये सुनने के बाद शहज़ादी ने तुरतं सवारी मंगाई और क़ब्र पर गई और फूल डाले फिर उसके बाद वो हर बरसी पर जाने लगीं ये बताने के बाद महबूबे इलाही फरमाते है कि जब एक धोबी का बच्चा बगैर देखे एक इंसान से सच्ची मोहब्बत कर सकता है तो हम इंसान उस अल्लाह से क्यों नही | आप फरमाते जब वो शहज़ादी कपड़ो के तहाने से अंदाज़ा लगा लेती है कि इसे किसने तहाए हैं तो ज़रा सोचो क्या मेरा वो रब दिल से पढ़ी गई नमाज़ और जबरदस्ती पढी गई नमाज़ की पहचान नही कर सकता ये कहकर फिर आप गश्त खाकर जमीन पर गिर गए।
झूठा पान
एक बार एक शख्स हज़रत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह के लिए खाना लाया और उसने रास्ते मे अपने मन मे सोचा कि अगर हज़रत अपने हाथ से मेरे मुंह मे एक लुकमा रख दे मेरी बड़ी खुशनसीबी होगी। फिर आपके पास आया तो आपने खाना खाया जब आप खाने से फारिग हुए तो वो शख्स वही बैठा रहा आप पान खा रहे थे आपने पान निकाल कर उसके मुंह मे डाल दिया और फ़रमाया की ये झूठा पान उस निवाले से बेहतर था इतना सुनते ही वो शख्स आपके क़दमो में गिर गया उसने कहा हज़रत में आपके हाथ से एक निवाला खाना चाहता था ये बात तो सिर्फ मेने सोची थी आप मुस्कुरा दिए आपने फ़रमाया अल्लाह की रज़ा के लिए जो भी अपने नफ़्स को कुचल देता है वो ये सब बातिनी बातें जानने की क़ुव्वत रखता है ।
बादशाह अलाउद्दीन खिलजी की तड़प
दिल्ली का मशहूर बादशाह अलाउद्दीन खिलजी आपसे बहुत मोहब्बत करता था और आपकी जियारत करना चाहता लेकिन अज़ीज़ों अल्लाह वालो का ये मामूल रहा है कि वो ये सब दिखा वा बिल्कुल पसंद नही करते थे। एक बार अलाउद्दीन खिलजी आस्ताने के बाहर पहुंचा तो अंदर जाने की इजाज़त माँगी लेकिन आपने इजाजत नही दी।
फिर बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने आपको एक खत भेजा कि हुज़ूर ये क्या मेरे यहाँ भी सिपाही है और आपके यहाँ भी सिपाही है तो आख़िर एक बादशाह और फ़क़ीर में फर्क क्या रह गया। आपने उसी खत के दूसरी तरफ उसको जवाब दिया कि हाँ ये सच है कि बादशाहो के यहां भी सिपाही रहते है और फकीरों के यहाँ भी लेकिन बादशाहो के यहां सिपाही इसलिए रखे जाते है कि कोई गरीब अंदर न आने पाए यहां सिपाही इसलिए रखे जाते है कि कोई बादशाह अंदर न आने पाए।
खत पढ़कर वो शर्मिंदा हुए। फिर उसने कहा हुज़ूर कम से कम खानकाह की जियारत (दर्शन) कर लेने दीजिये तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने कहा जाओ इसे ख़ानक़ाह दिखा दो। इसके बाद बादशाह ख़ानक़ाह में घूमता घूमता अस्तबल पहुंचा तो उसने देखा वहाँ के घोड़े सोने/चांदी की जंजीरों बंधे थे ये देखकर फिर उसे शरारत सूझी। उसने कहा हुज़ूर ये किया बादशाहो के यहाँ भी सोने/चांदी और फकीरों के यहां भी सोने/चांदी तो फिर फर्क़ क्या है-?सवाल देखकर महबूबे इलाही मुस्कुराए और जवाब में आपने लिखा सुन अलाउद्दीन बादशाहो के यहां पर सोने/चांदी को छुपा के रखा जाता है और फकीरों के यहां पर हमारे घोड़ो के पैरों के नीचे रौंदे जाते है यानी हम ये पैगाम देना चाहते है कि सोने चांदी की हकीकत सिर्फ इतनी है है कि उसे जानवर अपने पैरों के नीचे रौंदे ये जवाब पढ़कर बादशाह अलाउद्दीन खिलजी शर्मिंदा हुआ और वहां से चला गया।
( हदीस - - एक बार नबी क़रीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने कुछ जानिसार सहाबा के साथ तशरीफ़ ले जा रह थे रास्ते ने कूड़े का ढेर आया जहां पर एक बकरी का मरा हुआ बच्चा मिला आपने कहा तुमसे इसे कौन खरीदेगा-? सहाबा ने कहा या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये बकरी का बच्चा मरा हुआ है इसे कोई भला क्यों खरीदेगा। आपने जवाब दिया मेरे सहाबा इसी तरह ये दुनिया अल्लाह के यहाँ ज़िल्लत वाली है। )
फ़ज़र की नमाज़ काबा शरीफ में
अज़ीज़ों ये शरफ़ भी हज़रत ख्वाज़ा निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह को नसीब है। आपके ताल्लुक से अक्सर ये मशहूर है कि आप फजर क़ी नमाज़ खान ए काबा में ही अदा करते थे। एक बार हज़रत शेख नजमुद्दीन असबहानी रहमतुल्लाह अलैह उस वक़्त मक्का में इमाम थे।आपसे खादिमो ने पूछा कि दौरे वक़्त के वली ए क़ामिल हज़रत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह कभी काबा शरीफ़ की जियारत के लिए क्यो नही आते है। ये सुनकर वहां के इमाम हज़रत शेख नजमुद्दीन असबहानी रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया की मेने उन्हें कई बार यहां जमात के साथ नमाज़ पढ़ते देखा है।
दिल्ली अभी दूर है
आपका तज़किरा हो और ये जुमला अगर ज़हन ने न आये तो शायद ये अधूरा रहता । दरसअल उस वक़्त सुल्तान गयासुद्दीन तुग़लक़ आपसे दिली दुश्मनी रखता था एक दिन वो बंगाल गया हुआ था उसने अपने मंत्रियों और सिपाहियों से कहा कि दिल्ली पहुंचते वक़्त महबूबे इलाही को दिल्ली से निकाल दूंगा ये कहकर वो दिल्ली के लिए रवाना हुआ ये खबर जब महबूबे इलाही के पास आई तो आपने फ़रमाया की "दिल्ली अभी दूर है" उधर जब सुल्तान गयासुद्दीन तुग़लक़ दिल्ली से 5 किलोमीटर पहले एक जगह है तुग़लकाबाद वहां पहुँचा तो उसने सोचा लाओ आज रात यही आराम करता हूँ कल महबूबे आलिया को यही तलब करता हूँ इतना सोचकर वो सो गया। रात में बहुत तेज़ तूफान आया और उसका तम्बू उखड़ कर उसी के ऊपर गिर गया जिसमें दबकर वो मारा गया।
तोहफ़े में कैची दी
एक बार किसी ने आपको तोहफे में केंची दी आपने क़बूल कर लिया। और क़बूल करके तोहफा देने वाले से कहने लगे और इसकी जगह हमे सुई लाकर दो।क्योंकि हम सूफी है और ये कैंची है कैंची का काम काटना होता है जबकि सुई का काम जोड़ना होता है लिहाजा हमे सुई लाकर दो क्योंकि हम ख्वाज़ा वाले है आपने फ़रमाया की हम सब मुस्तफा वाले है और तब से आजतक हमारा काम मोहब्बत ही रहा है जोड़ने का ही रहा है ये सुनकर वो तोहफे देने वाला शर्मिंदा हुआ उसने क़दमो में गिरकर माफी तलब की।
शान ए अली मुर्तज़ा
मौला अली मुर्तज़ा की शान बयान करना आज लोगो के गले के नीचे से नही उतर रहा है। प्यारे तसव्वुफ़ के बानी ही अली है सूफिया के बिलवास्ता बाप है मौला अली । एक बात बता दूं प्यारे अली अली का ज़िक्र खुलकर किया करो ये शियो का तरीका नही बल्कि महबूबे इलाही निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह का तरीका है। आप के दरवाजे पर ये शेर लिखा है
पस खुर्द ए सगाने दर ए दो रिजते मन
हाशा अगर निगाह कुनम सूए अग्निया
"या अली अगर तेरी गली के कुत्ते का बचा हुआ हुआ
खाना नसीब हो जाये तो निजामुद्दीन खुशनसीब होगा "
अल्लाह अल्लाह ये कोई आम सूफी या शिया या आम इंसान नही कह रहा है बल्कि ये उसके जुमले है जो वक़्त का मुनाजिर ए आज़म जो दस्तगीर ए दो जहां है, जो सुल्तानुल मशायख है जो दिल्ली का क़ुतुब हो जो सिलसिला ए चिश्त का एक अज़ीम पेशवा है
एक बार एक बद अक़ीदह शख्स आपके पास आया और कहा महबूबे इलाही तुम्हारे पास क्या सबूत है कि मौला अली काबा में पैदा हुए ये सवाल सुनकर आपको जलाल आ गया।
आपने फ़रमाया सुन जाहिल अगर मेरा बाबा अली काबा में नही पैदा हुए है तो तू मुझे वो जगह बता दे जहाँ पर मेरे बाबा अली अलैहिस्सलाम की विलादत हुई हो आज से वही दर निजामुद्दीन के लिए काबा होगा!
माशाल्लाह ये होते है अल्लाह वाले जिनके सामने अगर मौला अली की जरा सी भी गुस्ताखी होती है तो उन्हें बर्दाश्त नही होता। अज़ीज़ों इस कौल से पहचानो कि मौला अली अलैहिस्सलाम की शान क्या है आज के मौलवी के हलक से मौलाए आलमीन की शान हलक से नीचे नहीं उतर रही है वो सहाबी-ए-रसूल के मर्तबे को चिल्लाकर चिल्लाकर मौला अली के बुग्ज़ में हज़रत अबू बकर सिद्दीक राजिअल्लाहो तआला अन्हू की शान बयान करते है अरे पागल मौला की शान क्या है हम सूफ़िया बहतर जानते है हर सूफी हज़रते सिद्दीक ए अकबर राजिअल्लाहो अन्हू को सालार ए सहाबा मानता है हम उन्हें सहाबा का सरदार मानते है ये अहले सुन्नत का तरीका रहा है लेकिन शान सबकी अलग अलग है। हा आज जरूरत है हम जब भी मौलाए आलमीन की शान बयान करे तो ये ख्याल रखे कि नबी क़रीम के किसी भी सहाबा की अदना सी भी तौहीन न होने पाए | हर सहाबा का मक़ाम हर वली से अफ़ज़ल है।
आप के मुरीद ख़लीफ़ा
आपके खुल्फा ने हिंदुस्तान के हर कोने में सिलसिला ए चिश्त को फैलाया । जिनमे ख्वाज़ा नसीरुद्दीन चराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, और हज़रत अमीर खुसरो रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत शेख अखी सिराज रहमतुल्लाह अलैह बंगाल, शेख बुरहानुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह बहुत ही मशहूर हुए हैं। आपने बाजहिर दुनिया ए फानी को 03 अप्रैल 1325 में अलविदा कहा।
महबूबे इलाही एक नज़र में
1. बाबा फरीद गंज शकर रहमतुल्लाह अलैह कहा करते थे कि मुरीद और बेटा शेख निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह की तरह होना चाहिए।
2. आप इल्म का समंदर थे उसके बावजूद आप उलेमाओं/सूफियों की बहुत ताज़ीम करते थे।
3. आपने कभी भी अपने इल्म / नसब/ तसव्वुफ़ पर कभी जर्रा भर तकब्बुर(घमण्ड) नही किया ।
4. आप फ़ज़र की नमाज़ अदा करने मक्का मुअज़मा तशरीफ़ ले जाते और जोहर की नमाज़ अपनी ख़ानक़ाह में पढ़ते थे।
5. आप बादशाहो से बहुत दूर रहते थे, आपके तसव्वुफ़ का अंदाज़ा लगा पाना आम इंसान के बस की बात नही है, हज़ारो क़रामते आपके बजाहिर दुनिया को अलविदा कहने के बाद आपके आस्ताने से जाहिर हुई है।
6. एक बद अक़ीदह मर्द के पेट मे बच्चा हुआ था ये करामत आपकी बाजहिर ज़िंदगी के कई सालों बाद हुई हे ।
7. आपको महबूबे इलाही/सुल्तानुल मशायख/दस्तगीर ए दो जहाँ/जग उजियार/क़ुतुब ए देहली भी कहा जाता है।
तो अज़ीज़ों ये है अल्लाह के महबूब वली अल्लाह अल्लाह जब इनकी ये शान है तो जरा सोचो मौलाए आलमीन अमीरुल मोमिनीन ताजदारे हल अता शेरे खुदा शौहर ए फ़ातिमा दामाद ए मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम यानी मौला अली अलैहिस्सलाम की शान मुबारक क्या होगी इसी मद्देनजर एक शेर मेरे ज़हन में गर्दिश कर रहा है
बगैर हुब्बे मुद्दआ नही मिलता
इबादतो का भी हरगिज़ सिला नही मिलता
खुदा के बंदों सुनो गौर से खुदा की कसम
जिन्हें अली नही मिलते खुदा नही मिलता
तो ये है महबूबे इलाही जिनका फेज़ ता क़यामत तक जारी रहेगा। मौला आपके सदके हम सबके गुनाहों को मिटाकर नेक सालेह बनाए | आपकी शान में अगर जाने अनजाने में कोई गलती या चूक हुई हो तो मौला माफ फरमाए ।