ख्वाजा सैयद नसीरुद्दीन महमूद रोशन चराग़ देहलवी अलैहिर्रहमा | Hazrat Khwaja Nasiruddin Mahmood Roshan Chirag Dehlvi

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 ख्वाजा सैयद नसीरुद्दीन महमूद रोशन चराग़ देहलवी अलैहिर्रहमा | Hazrat Khwaja Nasiruddin Mahmood Roshan Chirag Dehlvi

ख्वाजा सैयद नसीरुद्दीन महमूद रोशन चराग़ देहलवी अलैहिर्रहमा

विलादत, नाम, नसब

आपकी विलादत 1274 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के जिला अयोध्या (अवध) में हुई थी उन दिनों इसे अवध के नाम से भी जाना जाता था।

नाम

आपका असल नाम नसीरुद्दीन था।

नसब

नसब के एतबार से अक्सर मोअल्लिफ आपका शजरा ए नसब ख़लीफ़ा ए दोम हज़रत उमर फारूक ए आज़म रजिअल्लाहू तआला अन्हू से मिलाते हैं और कई मोअल्लिफ आपको हसनी सादात कहते हैं। इस जुमरे में तहक़ीक़ के बाद ये वाजेह हुआ है कि आप मौला इमाम हसन रजिअल्लाहू अन्हु की औलाद में से हैं। यानी आप को हसनी सैयद कहा जाता है। आप वालिदा की तरफ से भी सादात घराने के चश्मो चराग़ हैं।

खानदान की आमद

आपके दादा शेख यहया अब्दुल लतीफ अलैहिर्रहमा खुरासान से ईरान होते हुए लाहौर आये और यही रहने लगे चूंकि आपके खानदान का पेशा ऊनि कपड़ा बेचना था एक बार इस कारोबार में काफी नुकसान हुआ लोगो ने आपके वालिद से सलाह दी कि दिल्ली चले जाएं वहां का सुल्तान बहुत ही दयालु है वो जरूर कुछ मदद करेगा उसके बाद आपका सारा खानदान दिल्ली आ गया कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद आपका खानदान दिल्ली छोड़कर अवध (अयोध्या) चला आया और यही रहने लगा यही पर आप की पैदाइश हुई है।

ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया की बारगाह में हाजिरी

जब आपकी उम्र 9 साल हुई तो आपके वालिद का इंतेक़ाल हो गया। उसके बाद तालीम के लिए आप अब्दुल करीम शेरवानी और इफ्तिखारुददीन जीलानी साहब के पास गए जब आपकी उम्र 14 साल हुई तो आप ख्वाजा निज़ामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के दरबार मे पहुँचे और रूहानी तालीम हासिल करने लगे उन दिनों महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह का एक मामूल था कि जो भी मुरीद अक़ीदत के साथ रूहानी तालीम की तरफ तवज़्ज़ो देता था उस पर महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की नज़र होती थी जब वो तसव्वुफ़ के हर मरहले में पास हो जाता तो उसे आप ख़िलाफ़त अता करते थे आप भी दिन रात मुजाहिदा करते रहते आप को देखकर महबूबे इलाही बहुत खुश होते थे एक दिन आपने अपने पीर भाई तूती ए हिन्द हज़रत अमीर खुसरो रहमतुल्लाह अलैह से कहा कि ए खुसरो जाओ और मुर्शिद से इजाजत ले आओ की नसीरूद्दीन जंगलो में जाकर अल्लाह की इबादत करना चाहता हे शाम को अमीर खुसरो रहमतुल्लाह अलैह जब महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह ए आली में हाजिर हुए तो फ़रमाया की हुज़ूर आपके मुरीद नसीरुद्दीन जंगलो में रहना चाहते हैं और यादे इलाही में खो जाना चाहते हैं आपने फ़रमाया की सुनो खुसरो उनसे कह दो दिल्ली छोड़कर कहीं न जाये उनको यही रहना है और मुश्किलात का सामना करना है उसके बाद से आपने कभी भी जंगलो की तरफ जाने को सोचा भी नही और मुर्शिद के हुक्म के मुताबिक आप हमेशा दिल्ली में ही रहै ।



मुर्शिद से मोहब्बत

एक बार लाहौर से एक आलिम साहब खानकाह में तशरीफ़ लाये तो वो बहुत ही कीमती झुब्बा पहने हुए थे फजर के वक़्त उन्होंने वज़ू करने के लिए झुब्बा उतारा इतने देर में कोई शख्श उनका झुब्बा उठा ले गया जब वो वज़ू से फारिग हुए तो झुब्बे को ना पाकर शोर शराबा करने लगे उनका शोर शराबा सुनकर आप उनके पास आए और शोर करने की वजह जानी जब उन्होंने सारा माजरा बताया तो आपने फ़रमाया मेरे मुर्शिद नमाज़ अदा कर रहे हैं तुम ऊंची आवाज में शोर न करो ये लो मेरा झुब्बा ले लो लेकिन खुदा के वास्ते मेरे मुर्शिद की इबादत में खलल मत डालो आपकी ये अक़ीदत व आजिज़ी देख ख्वाजा निज़ामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह हुजरे के बाहर खड़े मुस्कुरा रहे थे।

चराग़ क्यों-- ?

आपके नाम मे रोशन चराग़ क्यों लिखा रहता है इसके पीछे कई रिवायतें हैं जिसमे कुछ रिवायतें जो एकदम सटीक बैठती है वो ये हैं |

1. कहते है कि एक बार बादशाह मोहम्मद फ़िरोज़ तुगलक ने खानकाह पर तेल की पाबंदी लगा दी यानी खानकाह के काम मे तेल ले जाना बंद कर दिया गया था और ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का उर्स मुबारक भी चल रहा था रात का वक़्त हुआ मुरीदों / अकीदतमन्दो ने चराग़ जलाने की ख्वाहिश की आपने कहा जाओ कुंआ से पानी निकालो लोगो ने पानी निकाला आपने उसी पानी को चराग़ में डाल दिया कुछ ही देर में सारे चराग़ जलने लगे आपकी इसी करामत के बाद से आपका नाम रोशन चराग़ पड़ गया

2. दूसरी रिवायत में है कि एक बार आप ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के पास खड़े थे सामने एक महमान भी बैठे थे आपके मुर्शिद ने कहा नसीरुद्दीन बैठ जाओ तो आपने जवाब दिया कि हुज़ूर अगर में बैठ जाऊंगा तो आपके मेहमान की तरफ मेरा पुश्त हो जाएगा जिससे आपके महमान की शान में गुस्ताखी होगी और में नहीं चाहता हूँ कि मेरे मुर्शिद के महमान की गुस्ताखी मुझ से हो ये सुनकर वो बहुत खुश हुए और फ़रमाया तुम बैठ जाओ नसीर चराग़ हर सिम्त से उजाला ही देता है उसके बाद से भी आपको सब चराग़ कहते थे।

ख़लीफ़ा - ए - अव्वल

ख्वाजा निज़ामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह अपने वक़्त के बुजुर्ग वली ए क़ामिल थे और ऐसे वली ए क़ामिल थे कि जिनका सानी तारीख़ में आज तक नही मिलता है। ख्वाजा निजामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह अक्सर कहा करते थे की में चाहता था कि अमीर खुसरो रहमतुल्लाह अलैह मेरे ख़लीफ़ा ए अव्वल बने लेकिन नसीर अपनी किस्मत पे जितना नाज़ करे उतना कम है क्योंकि अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म है कि मेरा ख़लीफ़ा ए अव्वल कोई और नही बल्कि ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चराग़ देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को बनाया जाये इस लिहाज़ से आपकी शान व अज़मत निराली है आपकी शान बयान करना मामूली बात नही है ।

बादशाह मोहम्मद तुगलक ओर उसका जुल्म

बादशाह मोहम्मद तुगलक ने आप पर बहुत जुल्म किये और आपने उसके हर जुल्मो सितम को बर्दाश्त भी किया क्योंकि आपके पीरो मुर्शिद ने पहले ही इरशाद फ़रमा दिया था कि नसीरुद्दीन तुम दिल्ली में ही रहना और तकलीफ बर्दाश्त करना सब्र का दामन कभी न छोड़ना। 

अज़ीज़ों अब हमें ये देखना है कि आखिर बादशाह तुग़लक़ आपको परेशान किस तरह करता था। दरसअल वो बहुत ही शातिर दिमाग था उसने कभी आपको सामने से कुछ भी गलत नही कहा यानी दिखावे में उसने कभी आपक़ी तौहीन नही की। उसके दरबार मे और भी उलेमा रहते थे जो आप से जलते थे उसने उन्ही उलेमा का सहारा लेकर आपको नीचा दिखाने की बहुत कोशिश की लेकिन आप के साथ अल्लाह और उसके रसूल का करम था जो आपको कुछ न हुआ एक बार आप दरबार में हाज़िर थे और भी उलेमा हज़रात थे बादशाह ने खादिमो से कहा दस्तरख्वान बिछाओ आज बुजुर्ग नसीरुदीन महमूद रोशन चराग़ देहलवी रहमतुल्लाह अलैह भी हमारे साथ खाना खाएंगे। इसके बाद बादशाह ने अपने शैतानी दिमाग का इस्तेमाल करते हुए कहा कि यहां पर ये हमारे महमान है और दरवेश है लिहाजा इन्हें चांदी के प्लेट में खाना दो ये सुनकर सारे उलेमा बहुत खुश हो गए क्योंकि वो जानते थे की चांदी के बर्तन में खाना खाना शरह के खिलाफ है और जैसे ही आज ये खाना खाएंगे हम इनके खिलाफ फतवा निकाल देंगे और बादशाह भी यही चाहता था कि आप किसी तरह खाना खा ले आप ने मना भी नहीं किया और उस प्लेट में सालन ले लिया और रोटी रख ली लेकिन जब खाने लगे तो सालन अपनी हथेली पर डाल लेते और उसी में भिगोकर खाते इस तरह से आपने किसी तरह खाना खाया और वहां मौजूद लोग शर्मसार हो गए उसके बाद आप चलने लगे तो बादशाह का वज़ीर आपके क़दमो में गिर गया और कहने लगा बाबा मुझे माफ़ कर दें में बादशाह के आगे मजबूर था आपने उसे उठाया और कहा नही जनाब हम तो अल्लाह वाले हैं हम छोटी छोटी बातों पर किसी से नाराज़ नही होते हैं ये देखकर बादशाह वज़ीर के ऊपर बहुत खफा हुआ इसी तरह से शातिर दिमाग का इस्तेमाल करते हुए उसने आप रहमतुल्लाह अलैह को बहुत ही ज़्यादा परेशान किया है जिसका जिक्र आपने खुद किया है ख्वाजा नसीरुद्दीन चराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह खुद फरमाते है कि उस वक़्त केलूला भी बड़ी मुश्किल से मयस्सर होता था आपने अपनी जिंदगी का हर एक लम्हा बहुत ही मुसीबत से गुजारा है लेकिन कभी भी सब्र का साथ नही छोड़ा। 

आपके खुल्फा

आपके खुल्फा की फेहरिस्त बहुत लंबी है एक से बढ़कर एक शख्सियत आपकी खुल्फा में है। जिनमे सबसे बड़ा नाम सैय्यदना सरकार बन्दानवाज़ गेसूदराज़ रहमतुल्लाह अलैह का है।

  1. हज़रत ख्वाजा सरकार बन्दानवाज़ गेसुदराज़ रहमतुल्लाह अलैह (गुलबर्गा शरीफ़)
  2. हज़रत ख्वाजा अल्लामा सैयद कमालुद्दीन अलैहिर्रहमा (दिल्ली)
  3. हज़रत शेख दानियाल अलैहिर्रहमा (सतरिख - बाराबंकी)
  4. हज़रत शेख सदरुद्दीन तबीब अलैहिर्रहमा (दिल्ली)
  5. हज़रत ख्वाजा सिराजुद्दीन अलैहिर्रहमा (फिरन पटन--गुजरात)
  6. हज़रत शेख अब्दुल मुक़तदिर अलैहिर्रहमा(महरौली, दिल्ली)
  7. हज़रत शेख मौलाना ख़्वाजगी अलैहिर्रहमा (काल्पी शरीफ, बुंदेलखंड )
  8. हज़रत शेख अहमद थानेसरी अलैहिर्रहमा (काल्पी)
  9. हज़रत शेख मुतवक़्क़ल किंतूरी अलैहिर्रहमा (बहराईच)
  10. हज़रत क़ाज़ी शेख कयामुद्दीन अलैहिर्रहमा(लखनऊ)
  11. हज़रत कुतब ए आलम अलैहिर्रहमा(जूनागढ़)
  12. हज़रत शेख जैनुद्दीन अली अलैहिर्रहमा (दिल्ली)
  13. हज़रत शेख मसऊद अलैहिर्रहमा(लाडो सराय, दिल्ली)
  14. हज़रत मीर सैयद जलालुद्दीन जहानीया जहांगश्त रहमतुल्लाह अलैह(ऊँच शरीफ पाकिस्तान)
  15. हज़रत शेख सुलेमान अलैहिर्रहमा (रूदौली--अयोध्या)
  16. हज़रत सैयद मोहम्मद बिन जाफ़र मक्की अलैहिर्रहमा(सरहिन्द)
  17. हज़रत सैयद अलाउद्दीन अलैहिर्रहमा (संडीला--हरदोई)

विसाल का वक़्त और आपकी दरियादिली

आप अपने हुजरे में बैठे अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की इबादत में मशगूल थे इतने में एक दुश्मन फ़क़ीर के हुलिए में अंदर चला गया और आपके जिस्म में चाकू से कई वार किए उस वक़्त आप आलमे इस्तेग्राक में थे जब आपके जिस्म ए अक़दस से खून निकलने लगा और बहकर बाहर पहुंचा तो बाहर पहरेदारी कर रहे आपके खादिम अंदर गए और उस मलऊन को पकड़ लिया शोर शराबा सुनकर आप आलमे इस्तेग्राक से बाहर आये तो देखा कि आपके जिस्म से खून निकल रहा है आपने अपने खादिमो से कहा खबरदार कोई भी इसे हाथ नही लगाएगा उसके बाद आपने एक खादिम से कहा जाओ अस्तबल से इसके लिए बढ़िया नस्ल का घोड़ा लाकर दो और दुश्मन से कहा तुम यहाँ से भाग जाओ वरना मेरे विसाल के बाद ये तुम्हे जान से मार देंगे अल्लाह अल्लाह इतनी दरियादिली ये सब्र जिसपे औलिया भी क़ुरबान यही वजह है कि आपका मक़ाम बड़ा ही आला व बरतर है। उसके बाद आपने 14 सितम्बर 1356 ईस्वी में इस दुनिया ए फानी को अलविदा कह दिया लेकिन आपका नाम ताक़यामत तक रोशन चराग़ की तरह जगमगाता रहेगा।

एक नज़र

1. आप की मुकम्मल हालात ए ज़िन्दगी तारीख़ ए फरिश्ता में मिलती है।

2. आपके मुर्शिद ख्वाजा निज़ामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह हैं।

3. आपके खलीफा में सबसे मशहूर सैयदना सरकार ख्वाजा बन्दानवाज़ गेसुदराज़ रहमतुल्लाह अलैह हैं। 

4. आप को कई मोतबर सूफिया और उलेमा ने फारूकी भी लिखा है।

5. सिलसिला ए चिश्तिया से तालुल्क रखने के बाद भी आप महफिले शमा नही सुनते थे बल्कि महफिले शमा से दूर रहते थे।

6. आप महबूबे इलाही के पहले ख़लीफ़ा हैं |

7. आप की पैदाइश अयोध्या में हुई है।

8. आपके एक ख़लीफ़ा अयोध्या जिले के रूदौली शरीफ में भी है।

9. आप की शान व अज़मत बहुत ही बुलन्द व बाला है। 

10. आपका पूरा नाम ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चराग़ देहलवी रहमतुल्लाह अलैह है।

आप की शान व अज़मत बुलंद बाला है आप की बड़ी बहन जिनका नाम हज़रत सैयदा बीबी कताना उर्फ हज़रत बड़ी बुआ साहिबा रहमतुल्लाह अलैहा है। जो कि अपने वक़्त की राबिया - ए - जमन और विलायत-ए-शहर अयोध्या थीं | आपका मज़ार मुबारक अयोध्या (गोरिस्तान में है। यहाँ साल में 2 बार उर्स लगता है। आपका तज़किरा जिन मोतबर किताबो में मिलता है उनका ज़िक्र करना भी ज़रूरी है -

  1. खेरूल नसीरुद्दीन मजालिस-- मलफूजात ख़्वाजा मख्दूम
  2. सियरुल आरफीन--हज़रत हामिद बिन फ़ज़्लुल्लाह 
  3. मिरातुल असरार-- शेख अब्दुर्रहमान चिश्ती
  4. अखबारूल अख़्यार - मुहद्दिस अब्दुल हक़ देहलवी 
  5. मजलिसे-ए-हसनिया -- शेख मुहम्मद चिश्ती 
  6. तारीख़ ए फ़िरोज़शाही -- शम्स ए सिराज अफीफ 
  7. खजीनतुल अस्फिया--हज़रत गुलाम सरवर 
  8. खानदानी बयाज़ - - रिज़वानुल्लाह वाहिदी, बलिया 

जिसमे से बलिया सिकन्दरपुर से जना सैयद रिज़वानुल्लाह शाह वाहिदी साहब हज़रत ख्वाजा अल्लामा सैयद कमालुद्दीन अलैहिर्रहमा की औलाद में से हैं और मेरे करीबी अज़ीज़म है मौला उनको सलामत रखे उनके इल्म व उम्र में बरकते अता फ़रमाए।

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