हज़रत शेख़ उस्मान अखी सिराजुद्दीन आईने हिन्द अलैहिर्रहमा | Hazrat Sheikh Usman Akhi Sirajuddin Aainae Hind

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 हज़रत शेख़ उस्मान अखी सिराजुद्दीन आईने हिन्द अलैहिर्रहमा 

 Hazrat Sheikh Usman Akhi Sirajuddin Aainae Hind

हज़रत शेख़ उस्मान अखी सिराजुद्दीन आईने हिन्द अलैहिर्रहमा

विलादत, नाम

आपकी विलादत 1258 ईस्वी में मुल्क हिंदुस्तान के सूबा लखनोती में हुई।आप ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद व खलीफ़ा हैं। आपको आईने हिन्द का लक़ब आरिफ ए बिल्लाह मुर्शिद ए क़ामिल ख्वाजा निज़ामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने दिया है इसीलिए आपके नाम मे आईने हिन्द जरूर लगता है।

तालीम

आपने तालीम हासिल करने की गरज से बंगाल से दिल्ली का सफर किया।उन दिनों दिल्ली में महबूबे इलाही की रूहानियत व मारफत का डंका बज रहा था आप तालीम की गरज से उन्ही के पास गए जहां उन्होंने आपको अपनी खानकाह में रख लिया और आप की तरबियत शुरु हुई। आप मुर्शिद की मोहब्बत और खिदमत में इतना डूब गए कि आप ज़ाहिरी तालीम नही हासिल कर सके फिर महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के ख़लीफ़ा हज़रत ख्वाजा शेख़ फखरुद्दीन जुर्रादी अलैहिर्रहमा ने आपको 6 माह में इल्मे दीन सिखाकर आलिम बनाने का वायदा किया और मुर्शिद की निगाहें करम से आपने 6 महीने में ही सारा इल्म हासिल कर लिया। उसके बाद आपने उस्ताद मौलाना रुकनुद्दीन साहब और तूती ए हिन्द हजरत अमीर खुसरो रहमतुल्लाह अलैह से भी सीखा कुछ दिनों में ही आप एक बहतरीन आलिमे दीन भी बन गए उधर तसव्वुफ़ पर आपका असर बचपन ही से था महबूबे इलाही ने जब आपका इम्तिहान लिया और आप उसमे खरे उतरे तो आपको सिलसिला चिश्तियां की खिलाफत व इज़ाज़त अता कर दी और आपकी रूहानियत और इल्म से मुतासिर होकर आपको आईने हिन्द का लक़ब दिया आज भी आपके चाहने वाले इसी लक़ब से ही आपको याद करते हैं।

(यहाँ इम्तिहान का मतलब उन दिनों महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह अपनी ख़ानक़ाह में जितने भी मुरीद को तालीम देते उन्हें हर मुआमलात में शरीयत और तरीक़त के रास्ते पर चलते हुए देखना चाहते थे जब आपकी ख़ानक़ाह रहकर मुरीद में आजिज़ी/इन्किसारी/इबादत/रियाज़त/मोहब्बत / शफक त/सब्र / मुआमलात में माहिर हो जाता तभी आप उसे में ख़िलाफ़त अता करते वरना आप मुरीदों को किसी तरह ढील नही देते थे।

लखनोती वापसी

पीरो-मुर्शिद से ख़िलाफ़त अता होने के बाद आप अपनी वालिदा के पास अपने गाँव लखनोती चले आये उधर आप के मुर्शिद हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने दुनिया ए फानी को अलविदा कह दिया उसके बाद फिर दिल्ली गए वहाँ अपने पीर भाइयो के साथ रहने लगे 4 साल के बाद 1329 ईस्वी में जब सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद कर ली थी तभी आप दिल्ली से हमेशा के लिए अपने गांव वापिस लौट आये। जहाँ आपने एक ख़ानक़ाह बनाई और लँगरखाना आम कर दिया जहाँ पर गरीबो को खाना खिलाया जाता था इसके अलावा आपने कुछ कीमती और अनमोल किताबें भी अपने पास रखी और धीरे धीरे पूरी लाइब्रेरी तैयार कर ली अब अक्सर उलेमा और सूफिया आते और किताब का मुताला करते थे।

पांडवा का सफर

कुछ दिनो बाद आपने पांडवा का सफर किया जहाँ आपकी मुलाकात हज़रत मख्दूम अलाउल हक़ पाण्डवी रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात हुई जो आपकी रूहानियत और तक़वे परहेजगारी से मुतासिर होकर आपके मुरीद हो गए। मखदूम अलाउल हक़ पाण्डवी रहमतुल्लाह अलैह की शान व अज़मत का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिनका एहतराम खुद सुल्तान सैयद मीर मख्म अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह करें उस हस्ती के मर्तबे का अंदाज़ा हम और आप क्या लगा सकते हैं-- ? मखदूम अलाउल हक़ पाण्डवी रहमतुल्लाह आपसे बहुत मोहब्बत व अक़ीदत रखते थे। आप सादगी पसन्द सूफी थे | जब आईने हिन्द रहमतुल्लाह अलैह सफर करते तो वो अपने सर पे गर्म खाना रखकर चलते थे ताकि मुर्शिद के भूख लगने पर वो गरम गरम खाना मुर्शिद को पेश कर सके। उसके बाद आप बंगाल चले आये और शादी की जिससे एक बेटी हुई जिसकी शादी अपने ख़लीफ़ा मख्दूम अलाउल हक़ पाण्डवी रहमतुल्लाह अलैह से कर दी।आपने बंगाल के भटके हुए लोगो मे तब्लीग शुरू की और लोगो को हक़ की राह पर लाने का मिशन शूरू किया दिन रात याद ए इलाही और हुकमे इलाही की तामील करते रहे बंगाल में आपने अपनी रूहानियत से इस्लाम का परचम लहरा दिया और क्यों न हो जब आपके मुर्शिद ने आपको आईने हिन्द का लक़ब दे दिया तो फिर अब कमी किस चीज़ की। आपके पीर भाई अमीर खुसरो रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं कि आप बंगाल वालो के लिए रोशनी की तरह हैं आपने बंगाल में ऐसे वक्त में दीन की तबलीग की है जब दूर दूर तक कोई अल्लाह और उसके रसूल का नाम लेवा नही था आप ही की तब्लीग और मेहनत का नतीजा था कि वहां पर इस्लाम फैला।

एक नज़र में

1. आप की पैदाइश लखनोती नाम के गांव में हुई थी ।

2. आपका आस्ताना सादुल्लाहपुर ( लखनोती ) बंगाल में है।

3. आपके मुर्शिद ख्वाजा निज़ामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह हैं ।

4. आपने उस वक़्त ख्वाजा निज़ामुद्दीन महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह से फेज़ लिया है जिस वक्त आपके साथ हज़रत अमीर खुसरो रहमतुल्लाह अलैह भी पढ़ते थे।

5. आपके मुरीदीन व खुल्फा में सबसे बड़ा नाम मख्दूम अलाउल हक़ पाण्डवी रहमतुल्लाह अलैह का है जो कि सैयद मख्दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह के भी पीर मुर्शिद हैं ।

6. आपने 1357 ईस्वी मे दुनिया-ए-फानी को अलविदा कह दिया।

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